प्रसिद्ध हेनरी फोर्ड का नाम जब लिया जाता है तब हमारी नजर मोटरगाड़ियो पर जाती है. वह नाम जिसने कारो को दूनिया भर मे लोकप्रिय बनाया. अमेरिका के मशहूर उधोगपति और ford motor company के संस्थापक henry ford. इन्होने ऐसी मोटर कारे बनाई जिसका खर्च आम लोग भी वहन कर सके.
कुछ साल पहले ford ने निश्चय किया की वह अपनी मशहूर v-8 मोटर बनाएँगे. वह कार के लिए v-8 इंजिन बनाना चाहते थे एक ऐसी कार जिसका खर्च आम लोग भी उठा सके. इसके लिए उन्होने एक ऐसा engine बनाने का निश्चय किया जिसमे आठ सिलिंडरो को एक ही जगह डालने का निश्चय किया गया और अपने इंजीनियरो को इस इंजिन का डिज़ाइन बनाने के लिए कहा.ये डिज़ाइन पेपर पर बनाया गया. लेकिन इंजीनियरो का मानना था की यह असंभव है. फोर्ड ने उनसे कहा किसी भी तरह इसे बनाया जाए. लेकिन उन्होने कहा की ये असंभव है. फोर्ड ने उन्हे आदेश दिया की आगे बढ़ो और तब तक लगे रहो जब तक तुम सफल ना हो जाओ चाहे कितना भी समय लगे.
इंजीनियर आगे बड़े. अगर उन्हे फोर्ड के स्टाफ मे बने रहना था तो उनके पास इस काम को करने के सिवाय ओर कोई चारा नहीं था. छे महीने बीत गए लेकिन कुछ नहीं हुआ. अगले छे महीने भी बीत गए लेकिन कुछ नहीं हुआ। इंजीनियरो ने हरसंभव कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हुए. साल के अंत मे जब फोर्ड अपने इंजीनियरो से मिले और अपने project के बारे मे पता किया तो एक बार फिर इंजीनियरो ने फोर्ड को बताया की वह इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का कोई रास्ता नही ढूंढ पाये. लेकिन फोर्ड अपने कार्य को लेकर इतने निश्चित थे की वो किसी भी हाल मे अपने लक्ष्य को पाना चाहते थे. वे इस कार्य से पीछे हटने को तैयार नही थे. उन्होने एक बार फिर अपने इंजीनियरो से कहा की मुझे ये चाहिए ही चाहिए. इंजीनियर एक बार फिर आगे बड़े। और फिर एक दिन ऐसा हुआ की उस रहस्य की खोज कर ली गयी. फोर्ड का दृढ़ संकल्प विजयी हुआ. उनकी कल्पना सच हो गयी। उन्होने जिसकी कल्पना की, जिसकी इच्छा की वह जिद अंतत: सफल हुई. अनेक असफलताए मिलने के बाद भी वह कुंठित (frustrate) नहीं हुए और अपने लक्ष्य के प्रति अड़िग रहे और देर सवेर उन्हे सफलता मिल ही गयी. यह कार्य जिसे शुरुआत मे इंजीनियरो ने असंभव बताया था, वह संभव हो गया था.
इससे हमे यह सीख मिलती है की अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति निश्चित है, तो असफलताओ से घबराने की जरूरत नही. जैसा की henry ford खुद कहते है.
“Failure is simply the opportunity to begin again, this time more intelligently.”