कैसे मानसिक समस्या को ऊपरी हवाओं का नाम देते है लोग

भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में आज भी कई मानसिक रोगों को ऊपरी का नाम दिया जाता है। लोग इसे आत्माओं, पिछले जन्म से जोड़ने लगते है. ऐसी ही एक घटना शिवानी के साथ भी हुई। तो आइये जानते है आगे की कहानी शिवानी की जुबानी…

हैलो दोस्तों, मेरा नाम शिवानी है. मैं कानपुर (उत्तर प्रदेश) की रहने वाली हूँ। मेरा जन्म सान 1990 में हुआ, मेरी माँ बताती है कि मैं बचपन में बहुत तेज थी जैसे मैंने आम बच्चों की तुलना में जल्दी बोलना और चलना शुरू कर दिया था। जब मैं 3 साल की थी तो प्ले-वे स्कूल जाने लगी और वही एक दिन स्कूल में मैं खेलते-खेलते गिर गई। घर से मम्मी-पापा को बुलाया, वो मुझे डॉक्टर के पास लेकर गए। डॉक्टर ने चेक किया सब नॉर्मल था. कोई बुखार नहीं कोई दूसरी बीमारी नहीं। बात आई गई हो गई।

अब दूसरी बार ये तब हुआ जब मैं पाँचवी क्लास में थी. स्कूल के बेंच पर बैठे-बैठे अचानक से गिर गई. शरीर कांपने लगा। दाँत एक दम चिपक गए। टीचर उठा के डॉक्टर के पास ले गए. तब तक मुझे होश आ चुका था. डॉक्टर ने पूछा मुझे क्या हुआ है तो मुझे कुछ पता ही नहीं था। जब मम्मी-पापा और आसपास के लोगों को पता चला की मेरे साथ स्कूल में ऐसा कुछ हुआ है तो उन्हें लगा की मेरे पर ऊपरी हवा है।

अब वो मेरी ऊपरी हटाने के लिए भारत के कई राज्यों में लेकर गए और साथ-साथ मेरा डॉक्टर के पास भी इलाज करवाते रहे। और फिर एक दिन डॉक्टर ने हमें दिल्ली में न्यूरोलोजिस्ट के पास जाने को कहा। हम डॉक्टर  से मिले और उन्होने मेरी ECG की और फिर जब उसकी रिपोर्ट आई तो पता लगा की मुझे मिर्गी की बीमारी है. डॉक्टर ने बताया की मेरा दिमाग सामान्य से ज्यादा तेज चलता है तो फिट पड़ जाते है जैसे की जब कोई मशीन अपनी गति से ज्यादा तेज चलती है तो शॉर्ट-सरकेट हो जाता है बिलकुल वैसे ही। खैर मेरा इलाज शुरू हो गया. मैं रेगुलर दवाई लेने लगी। उस वक्त मैं 14 साल की थी काफी कुछ समझने लगी थी।

तीन साल रेगुलर इलाज और दवाइया खाने से मैं थोड़ा स्लो हो गई। ऐसा नहीं है की मैं धीरे-धीरे काम करती थी बस वो दवाइयो का असर था जो मुझे स्लो कर रहा था लेकिन मेरे रिश्तेदार और आसपास के लोग अभी भी इसे ऊपरी का नाम दे रहे थे. अब भी मेरे मम्मी-पापा मुझे कभी पंजाब लेकर जाते तो कभी गुजरात। खैर 14 साल की उम्र से 25 साल तक मुझे कोई फिट नहीं पड़ा, इस बीच मुझे हल्का सा भी बुखार होने पर मेरे मम्मी-पापा मेरा पूरा खयाल भी रखते और लोगो के कहने पर मुझे अलग अलग बाबाओ के पास भी जाते।

अब मैं बिलकुल सामान्य भी हो चुकी थी। मेरे पास अच्छी जॉब थी मेरा अच्छा करियर था और फिर मेरी शादी हो गई। शादी के लगभग एक साल बाद मुझे एक बहुत तेज फिट पड़ा। मेरे दाँत आपस में चिपक गए. मेरा मुँह खुल नहीं रहा था और शरीर पूरी तरह से कापने लगा। मेरे पति को अपनी इस बीमारी के बारे में मैंने पहले ही बता दिया था। मेरे पति इस बात को समझ गए और अगले ही दिन हम एक बड़े ही सीनियर न्यूरोलोजिस्ट के पास गए। मैंने अपनी पुरानी रिपोर्टस उन्हे दिखाई और मेरा फिर से इलाज शुरू हो गया।

पिछले कुछ सालो में मुझे एक भी फिट नहीं पड़ा और मैं बिलकुल सामान्य हूँ. एक कंपनी में एच आर की पोस्ट पर काम कर रही हूँ और अपनी एमबीए भी पूरी कर रही हूँ मुझे सही समय पर सही इलाज मिल सका इसलिए आज मैं अपनी जिंदगी को खुल कर जी पा रही हूँ और इसका श्रेय मेरे परिवार जाता है. मुझे गर्व है अपने मम्मी-पापा पर,उन्होने अपनी सूझबूझ से मेरे इलाज को कभी रुकने नहीं दिया। मैं जानती हूँ ये बिलकुल भी आसान नहीं रहा होगा उनके लिए जब एक तरफ लोग मेरी बीमारी को ऊपरी का नाम दे रहे थे वो मुझे नियमित रूप से डॉक्टर के पास ले जा रहे थे समस्या बड़ी थी लेकिन उन्होने अपना धैर्य नहीं खोया।और मेरा इलाज पूरा करवाया।

लेकिन आज भी जब मै अपने आस पास देखती हूँ तो दिखाई देता है की लोग ज़्यादातर मानसिक समस्याओ को भूत, आत्मा का प्रकोप या ऊपरी हवाओ का नाम देते है। जैसे मानसिक स्वास्थ्य बिलकुल मायने रखता ही नहीं हो। इसका एक कारण मानसिक रोगो के प्रति awareness की कमी भी है। मै उन लोगो से यही कहना चाहूंगी की किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले एक बार डॉक्टर या एक्सपेर्ट की सलाह जरूर ले।

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One Response

  1. Apeksha khot 13/09/2020

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