फिल्मो (films) के महानुभावो का कहना है कि फिल्म समाज का आईना होती है मतलब हमारा समाज जैसा है वैसी ही फिल्म होती है क्या ये बात आपको सही लगती है?
वही दूसरी तरफ कहा जाता है कि फिल्मो से समाज बनता और बिगड़ता है यानी फिल्मो और टीवी में जैसा होता है समाज भी उसी कदमो पर चलता है हम जैसा टीवी या फिल्मो (films) में देखते है वैसा ही करने या बनने की कोशिश करते है।
इन दोनों ही बातो में बहुत फर्क है फिल्म समाज का आईना होती है ऐसा हम भारतीय सिनेमा के शुरुवाती दौर में कह सकते है जिनमे से कुछ फ़िल्म के उदाहरण है पथे पांचाली,मदर इंडिया, आदि। और इसके बाद भी कुछ फिल्म या टीवी के नाटक बने जो हमारे समाज को हमारे सामने रखते है जैसे तामस, नीम का पेड़ तीसरी कसम ये वो कुछ फिल्म और नाटक है जो हिंदी साहित्य द्वारा लिखे गई मतलब उपन्यास का फिल्मांकन किया गया। जबकि उस दौर में फिल्मो(films) को अच्छा नही माना जाता था
अब बात आती है 90 के दशक की, उन दिनों जो फिल्में बनी वो सभी काल्पनिक कहानियो पर ज्यादा थी और कहानियो को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाने लगा ताकी लोगो का मनोरंजन हो सके या अगर ऐसा ऐसा कहे तो गलत नही होगा की केवल मनोरंजन के लिए है जबकि लोगो का मनोरंजन करना फ़िल्म का एक हिस्सा होता था। और 20वी सदी के आते आते सरकार की घोषणा के साथ फ़िल्म पूरी तरह से उद्योग बन गया।
आज हाल ये है कि फिल्मो या टीवी के नकारत्मक प्रभाव ज्यादा है. फ़िल्म मार्किट के हिसाब से बनती है . फिल्मो का उदेशय पैसा कामना बन गया है चाहे वह जरिया कॉमेडी का नाम पर अश्लीलता दिखाना हो या प्यार के नाम पर इंटिमेट सीन्स.
ज्यादातर फिल्म समाज के आईने को तोड़ती है जिससे एक नया और खोखले समाज का निर्माण हो रहा है. आज ज्यादातर फिल्म या टीवी के नाटक कल्पनाओ पर आधारित है.
आइये जानते है आज हमारी फिल्मे (films) और नाटक लड़कियों और लडको के रिश्ते को किस प्रकार दर्शा रही है या हमें क्या सीखा रही है
- अगर आप किसी लड़की के साथ लफंगो जैसा बर्ताव करंगे तो वह आपसे इम्प्रेस हो जायगी और पट जाएगी
- लड़की के मना करने के बावजूद उसके पीछे भागना या पाने की जिद करना हीरोइस्म की निशानी है.
- हीरो चाहे जैसा भी हो फिल्म के आखिर में उसे हीरोइन पक्का मिलेगी
- अगर हीरो को प्यार में दोखा मिला है तो उसका सुसाइड करना या शराब की लत लगना जायज है
- लडकियों के शरीर पर जोक्स बनाना या कमेंट पास करना आम बात है. ऐसा करने पर लड़कियां खुश होती है .
- प्यार को अश्लीलता के रूप में दिखाना आम बात है
- शराब के बिना आप कोई ख़ुशी या पार्टी सेलिब्रेट नहीं कर सकते
अगर शोर्ट में कहा जाये तो आज 80% फिल्मे (films) का मुख्य फोकस Money, Hot chicks, Hot dudes, hot Scenes, fight, rivalry, Bikini , Party…. तक सिमित है.
ऐसा हुआ होगा, ऐसा हुआ हो सकता है और ऐसा ही होगा, ये तीनो ही स्थिति समाज में डर पैदा करती है और और ऐसा समाज बना रही है जो वर्तमान में न रह कर भविष्य की और हमे भागने को मजबूर करती है। वही दूसरी अच्छे सन्देश या बौद्धिकता के स्तर पर भी कुछ फिल्म बनती है लेकिन वो गिनी चुनी है
इस लेख का उद्देश्य किसी फ़िल्म की आलोचना करना नही है हम बस फ़िल्म से बाजार और बाजार के माध्यम से जो डर पैदा हो रहा है वह बताना चाहते है यानि हम समाज में जो गलत काम हो रहा है वो डर और लालच के कारण हो रहा है जिसमे आज की फिल्मो का बहुत बड़ा योगदान है।
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I like this post, exposing the Indian films reality of current time.