बचपन की उम्र एक ऐसी उम्र होती है जिसमे बच्चा आराम से हताश हो सकता है और अपने मे नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा कर सकता है. उन्हे बहुत सी तनावपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है. फिर चाहे वो स्कूल के अंदर की दुनिया हो या स्कूल के बाहर की. बचपन की उम्र बच्चे के सीखने की उम्र होती है और उस पर काफी दबाव भी होता है, ये दबाव माता पिता और टीचर्स की अकांक्षाओ का हो सकता है. जैसे की अपना होम वर्क पूरा करना, स्कूल टेस्ट और एग्जाम मे अच्छा करना, ट्यूशन मे अच्छा करना, एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज मे अच्छा करना. साथ ही साथ अपने साथी बच्चो से कम्पटीशन की भावना से भी दबाव बनता है. निजी जीवन मे भी बच्चे कई तरह की चीजो का सामना करना पड़ता है, जैसे साथी बच्चो का ज्यादा अमीर घरो से संबंध होना जिससे वे उस बच्चे की तुलना मे ज्यादा सुखद चीजो का उपभोग करते है, अपने फ्रेंड सर्किल मे बर्थडे पार्टी का इनविटेशन ना मिलना. ऐसे मे बच्चे के साथ कुछ भी नकारात्मक होने से बच्चा ना केवल तनाव महसूस करता है बल्कि नकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित कर सकता है. अत: ऐसे मे माता पिता, भाई-बहन, अध्यापक, ट्यूशन टीचर, केयर टेकर होने के नाते बच्चो मे सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिये उन्हे लगातार अच्छी बाते सिखानी चाहिये. इस लेख मे हम ऐसी ही कुछ अच्छी बातो का जिक्र करेंगे जिससे वे बच्चो मे सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित कर पाये और उनके जीवन मे सकारात्मक परिणाम ला पायेंगे. जीवन मे कुछ ऐसी परिस्थितिया आती है जब बच्चे दबाव महसूस करते है और कुछ ऐसे विचार विकसित कर लेते है जो नकारात्मक होते है.ऐसे मे आप उन्हें क्या कह सकते है.
बच्चो के नकारात्मक सवालों का दे सकारात्मक जवाब
अगर बच्चे ये सोचे
यह बहुत मुश्किल है मै यह नहीं कर सकता
आपको क्या कहना है
यह आसान है, तुम कोशिश करो, यह हो जायेगा
अगर बच्चे ये सोचे
मुझे यह कार्य छोड़ देना चाहिये क्योकि मै यह नहीं कर सकता
आपको क्या कहना है
तुम कर सकते हो, क्योकि तुम बेस्ट हो जो ये कार्य कर सकता है, जब बाकी बच्चे कर सकते है तो तुम तो ये निश्चित ही कर सकते हो क्योकि तुम बेस्ट हो.
अगर बच्चे ये सोचे
मुझसे बार बार गलतियाँ होती रहती है, इसलिये मै अच्छा नहीं कर पाता
आपको क्या कहना है
गलतिया तो सब करते है, गलतियों से हमे सीख लेनी है ताकि आगे ये गलती हम ना करे, इससे लाइफ मे सब अच्छा होगा.
अगर बच्चे ये सोचे
मै जो करता हूँ उसमे फेल हो जाता हूँ
आपको क्या कहना है
लाइफ मे पास वही होते है जिन्हे अनुभव होता है और ये अनुभव बुरे अनुभव से आता है. तुम्हारा फेल होना बूरा अनुभव ही है. तुम इससे सीख लो की तुमने क्या गलत किया है, ये सुधार आपको आपके काम मे पास जरूर करवायेगा.
अगर बच्चे ये सोचे
मै समझदार नही हूँ, क्योकि मुझे कुछ भी समझ मे नही आता
आपको क्या कहना है
तुम धीरे धीरे बातो और चीजो को समझने की कोशिश करो. कोशिश करने से तुम जल्द ही बातो को समझने लगोगे. तुम जितना प्रयास करोगे तुम उतने ही ज्यादा समझदार बनते जाओगे और तुम्हारी समझ भी विकसित हो जायेगी.
अगर बच्चे ये सोचे
मै ज्यादा मेहनत नहीं कर पाता
आपको क्या कहना है
ये बात सोच के चलो की जितनी ज्यादा मेहनत होगी उतना ही अच्छा रिजल्ट भी होगा. ये बात तुमसे ज्यादा मेहनत करवायेगी.
अगर बच्चे ये सोचे
मै इससे ज्यादा नहीं कर सकता
आपको क्या कहना है
ये तुम्हारा बेस्ट नहीं है, तुम इससे ज्यादा बेस्ट दे सकते हो. जितनी ज्यादा मेहनत और प्रयास सफलता के अवसर उतने ही ज्यादा.
अगर बच्चे ये सोचे
जब आपका बच्चा बहुत नकारात्मक सोचे और महसूस करे.
आपको क्या कहना है
बच्चे के साथ सकारात्मक अनुभव शेयर कीजिये. अपने बच्चे को प्रोत्साहित करते रहिये. उसे सकारात्मक फिल्मे और सकारात्मक किताबो से मित्रता कराइये. उसे सकारात्मक गतिविधियों के साथ जोड़िये.
कई बार बच्चो का व्यवहार माता पिता, अध्यापको और केयर टेकर के बच्चो के साथ किये जाने वाले बर्ताव से भी प्रभावित हो जाता है. और बच्चा इस वजह से भी नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर लेता है. बच्चो को दी जाने वाली गालिया, डांट, मारना-पीटना, कोसना, बच्चो को कही जाने वाली उलटी बाते जैसे की तू नालायक है, तू कुछ नहीं कर पायेगा, तेरे से अच्छा तो वो है बच्चो पर उल्टा असर डालती है और बच्चा सुधरने की जगह बिगड़ जाता है इसलिये बच्चो के साथ सही बर्ताव करना जरूरी है. क्योकि बच्चो के भविष्य के साथ परिवार और देश का भविष्य भी जुड़ा हुआ है इसलिये हमे बच्चो के साथ सही बर्ताव और सकारात्मक व्यवहार करना चाहिये, ताकि बच्चा सकारात्मक परिणाम दे सके.
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बहुत बढ़िया. आपके साथ में उदहारण दे कर बताना तो – बहुत ही बढ़िया.
I really liked it. Thanks