मन और शरीर की अवधारणा को विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओ मे अलग अलग तरीको से समझा गया है. मन का शरीर से संबंध और मन शरीर कि समस्या को मन और शरीर के दर्शनशास्त्र में आमतौर पर एक प्रमुख मुद्दे के रूप में देखा जाता है. इस क्षेत्र में कार्य कर रहे दार्शनिको का मुख्य उद्देश्य मन, शरीर और मानसिक अवस्थाओ की प्रकृति का निर्धारण करना है और ये पता लगाना है की मन कैसे प्रभावित होता है और ये शरीर को कैसे प्रभावित कर सकता है.
इस लेख में बताया गया है की मानव क्या है, उसकी पहचान क्या है. मन और शरीर की प्रकृति क्या है और मन कैसे हमारे जीवन को निर्देशित और प्रभावित करता है. कैसे हम अपने मन और अनचाहे विचारो को नियँत्रित कर सकते है.
क्या आप ये बात सोचकर हैरान हुए है की हमारा मन क्यो और कैसे कार्य करता है. कैसे यह अव्यवस्थित और बिखरे हुए विचारो के साथ आता है. कभी कभार आप अपने आपको भविष्य की किसी घटना या किसी स्त्री या पैसा या सेक्स आदि के बारे में सोच रहा और अनुभव कर रहा पाते हो. इनमे से कुछ अच्छे होते है तो कुछ बुरे. हम सब अपने जीवन में संतोष और सफल जीवन चाहते है ऐसा करने के लिए हमें अपने mind और thoughts को अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रखना होगा., लेकिन गुस्सा, डर, चिंता, काम वासना, पैसो की इच्छा, लालच और दुसरे अनचाहे विचार mind को लक्ष्य, ख़ुशी और संतोष पर फोकस नहीं करने देते. uncontrolled mind हमारे जीवन में हवस,तनाव, डर और गुस्से का स्त्रोत होता है. भगवद गीता के अनुसार जो मन पर विजय प्राप्त कर ले, मन उसका सबसे अच्छा दोस्त होता है, लेकिन जो ऐसा करने में असफल रहते है मन उसका परम शत्रु बन जाता है.
मन और शरीर को काबू में कैसे रखे
गीता में मन को नियँत्रित करने के बारे में बताया गया है. इस ग्रंथ ने मन, शरीर और आत्मा के बिच अंतर किया है. जिसमे मानव शरीर की तुलना रथ से की गयी है और रथ के घोड़ो को हमारे शरीर के विभिन्न अंग माना गया है जैसे आँख, नाक, कान, जीभ, अनचाहे विचार. सारथी को मन माना गया है और आत्मा को रथ का स्वामी माना गया है. मानव सांसारिक सुखो के प्रति आकर्षित होता है ये सांसारिक सुख है वासना, सेक्स, पैसा, लालच, अनावश्यक और अनचाहे विचार, गुस्सा. उसका मन उसे इन सुखो और विचारो की दिशा में मार्गदर्शित करता है. यह तभी तक संभव है जब तक की मन को काबू में ना कर लिया जाए.
अनियंत्रित मन इन्द्रियों को सांसारिक सुखो की ओर ले जाता है, मन सांसारिक सुखो की ओर आकर्षित होता रहता है, लेकिन जब मन को नियँत्रित कर लिया जाता है, तब यह आपको सही दिशा की ओर ले जाता है जहाँ आप जाना चाहते है. ऐसे में आप जीवन में सफलता और संतोष भी प्राप्त कर सकते है.
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मन को नियंत्रण मे रखने का उपाय.
क्या हम अपने मन को नियँत्रित कर सकते है. इसका जवाब है हाँ, मन बहती हवा की तरह होता है जिसे नियँत्रित करना कठिन होता है लेकिन असंभव नहीं, अगर हम चाहे तो अपने मन और विचारो को नियंत्रित कर सकते है. इस सन्दर्भ में गीता का उल्लेख करना भी जरूरी है. जहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को मन को कैसे नियँत्रित किया जाये के बारे में बताते है
मन को नियँत्रित करने के लिए दो हथियारों का सहारा लेना पढ़ता है. पहला हथियार अभ्यास का है और दूसरा हथियार वैराग्य का है. अभ्यास का मतलब है सतत या निरंतर अभ्यास. इसके अंतर्गत मन को किसी एक चीज पर फोकस करो, वह वहाँ से भागेगा, मन पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करो, वो फिर भागेगा, उसे फिर पकड़ो, ऐसा आपको बार बार करना होगा.
एक बार जब मन सीधे रास्ते पर आ जाये तो वह फिर उसी रास्ते पर ना चला जाये इसलिए हमें दूसरे हथियार वैराग्य की जरूरत पढ़ती है. क्योकि आपकी मंजिल के दौरान आपका मन उन्ही सांसारिक सुखो के प्रति आकर्षित होता रहेगा. अत: इसे सदा के लिए नियँत्रित करने के लिए दूसरे हथियार वैराग्य का सहारा लेना होगा. वैराग्य की प्राप्ति ज्ञान के द्वारा संभव है. मन को यह समझाना होगा की सारे सांसारिक सुख झूठे है. जब मन यह समझ जायेगा तो मन बुराई की ओर झुकेगा नहीं. इससे मन अनुशासन विकसित करेगा और ये अनुशासन आत्म नियंत्रण को विकसित करेगा. जब मन बुराइयों से छुटकारा प्राप्त कर लेता है और सांसारिक सुखो पर विजय प्राप्त कर लेता है, तब उसका ध्यान उसके लक्ष्यों पर केन्द्रित हो जाता है और वह सांसारिक सुखो और ऐसे विचारो जो उनके लक्ष्य में बाधा बने उनसे घृणा करने लगता है.
आपने काफी अच्छा पोस्ट लिखा है. ये आपकी पोस्ट काफी युसफुल है. धन्यवाद!
mera name indra kumar hamara rashiname ghanshyam hai kripaya mujhe man ko niyantrit ke upay batane ki kripa kare!
dhanyabad
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