जानिए क्या है आटिज्म के कारण,लक्षण और इलाज Autism in hindi

बीमारी चाहे किसी भी प्रकार की हो, किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो, यदि उसके बारे में हमे थोडा बहुत मालूम हो तो हम उसे ठीक करने के लिए जल्दी कदम उठा सकते है लेकिन हमे परेशानी के लक्षण ही पता न हो तो इलाज में देरी हो सकती है जिससे परेशानी और बढती है. आज इस लेख में हम ऐसी ही परेशानी के बारे में बतायेंगे जो मुख्यतः बच्चो में पाई जाती है और इसका नाम है आटिज्म (AUTISM). International Classification of Disease में F84.0 से F84.9 मे autism spectrum disorder को  classified किया गया है जिसमे आटिज्म के साथ साथ उसकी जैसी ओर बिमारियों के बारे में बताया गया है.

तो दोस्तो सबसे पहले हम जानेंगे की आटिज्म होता क्या है और इसके कारण, लक्षण, उपचार और माता पिता के लिए परामर्श क्या है?

 

आटिज्म क्या होता है – AUTISM in hindi

आटिज्म या आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक प्रकार का मनोविज्ञानिक विकासात्मक विकार है जिससे हमे जीवन के अलग अलग पहलुओ पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  इसे विकासात्मक इसलिए कहा गया है क्योकिं यह जन्म से ही बच्चे को होती है और जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है वैसे वैसे इसके लक्षण उभर कर सामने आना शुरू हो जाते है. यह सामाजिक कौशल, दोहराए जाने वाले व्यवहार, और संचार की चुनौतियों की स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला को दर्शाता है।

आटिज्म से पीड़ित बच्चों को संवाद करने में परेशानी होती है। उन्हें यह समझने में परेशानी होती है कि दूसरे लोग क्या सोचते और महसूस करते हैं। इससे उनके लिए खुद को शब्दों के जरिये, चेहरे के भाव और स्पर्श के माध्यम से व्यक्त करने मे बहुत कठिनाई हो जाती है।

लड़कियों की तुलना में लड़कों में आटिज्म चार गुना अधिक देखा गया है।

आइये जानते है इसके लक्षण जिससे इस परेशानी की पहचान की जा सकती है तथा इन लक्षणों के कारण क्या क्या परेशानी होती है.

 

आटिज्म के लक्षण- Symptoms of AUTISM in hindi

आटिज्म के लक्षण आमतौर पर जीवन के पहले तीन वर्षों के दौरान दिखाई देते हैं। कुछ बच्चो मे जन्म से ही लक्षण दिखाई देते हैं तो कुछ बच्चो मे मे 18 से 36 महीने मे लक्षण दिखाई देना शुरू होते हैं।

बहुत कम सामाजिक मेलजोल और बातचीत करना:-

आटिज्म  से ग्रसित बच्चे को अपने विचार साझा करने और अपनी बात समझा पाने में बहुत परेशानी होती है।  वह बहुत कम या न के बराबर दुसरो से आँख मिलाते है और दुसरो की बात एक जगह बैठ के आराम से नही सुनते।  इसके अलावा भी वे कई समस्या का सामना करते है जैसे –

  • जब कोई बुलाये तो कोई प्रतिकिया न देना  या फिर बहुत देर बाद कुछ प्रतिकिया देना.
  • बातचीत जारी रखने में परेशानी होना
  • बोलना कुछ और चेहरे के हाव-भाव से कुछ और लगना
  • चिडचिड़ापन या जल्दी गुस्सा दिखाना.
  • बोलते समय आवाज निकालना जैसे गाने की आवाज या फिर बहुत जल्दी वाक्यों को खत्म कर देना.
  • बहुत ही कम और एक ही व्यवहार को बार बार करना
  • एक ही प्रकार के व्यवहार को दोहराना जैसे एक ही शब्द या वाक्यों को बार बार कहना.
  • कुछ चीजों में बहुत ज्यादा रूचि रखना जैसे नंबर या फैक्ट्स.
  • चीजों को एक जगह से दूसरी जगह खिसकाते रहना.
  • यदि दिनचर्या में कुछ बदलाव किया जाए जैसे खाने पीने का समय या साफ़ सफाई का समय तो बहुत ज्यादा नाराजगी दिखाना.
  • कुछ विशेष चीजों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना जैसे जैसे कोई आवाज़, कोई रोशनी, कोई रंग या किसी प्रकार के कपडे.

इन सभी मुख्य लक्षणों के अलावा अलग अलग केस में अलग अलग परेशानियाँ हो सकती है जैसे नींद की समस्या, चिडचिड़ापन, किसी चीज़ को बार बार छुते रहना, खुद को नुकसान पहुंचाते रहना आदि. खैर इन सभी परेशानियों के अलावा autism की कुछ खूबियाँ भी होती है जैसे किसी जानकारी को बहुत ज्यादा समय के लिए याद रखना, चीजो को देख कर सुन कर लंबे समय तक याद रखना आदि।

 

आटिज्म  के कारण – Cause of AUTISM in hindi

वैसे तो शोधकर्ता और मनोवैज्ञानिक इसके मुख्य कारण का पूरी तरह पता नही लगा पायें है क्योकिं इसमें कई प्रकार के पहलु होते है।  कई शोध इसे अनुवांशिक समस्या बताते है हालाकि मनोवैज्ञानिक ऐसा भी पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि ऐसा बाकी लोगो को क्यों नही होता. आइये कुछ कारणों पर नज़र डालते है.

 

Genetics

आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में कई अलग-अलग जीन शामिल हैं। कुछ बच्चों मे, autism आनुवंशिक विकार से जुड़ा हो सकता है, जैसे कि रिट्ट सिंड्रोम या फ्रजाइल एक्स सिंड्रोम। अन्य बच्चों मे,आनुवंशिक परिवर्तन ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। कई बार बच्चो को ये जीन विरासत में हैं जैसे परिवार में किसी और सदस्य को ऑटिज्म हो जैसे माता-पिता या भाई-बहन को।

 

Environmental factors

शोधकर्ता के अनुसार गर्भावस्था के दौरान  वायरल संक्रमण  या complications आटिज्म को ट्रिगर करने में भूमिका निभाते हैं।

 

Extremely preterm babies

26 सप्ताह से पहले पैदा होने वाले शिशुओं में आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का अधिक खतरा हो सकता है।

 

Oxygen

जन्म के समय कम वज़न या जन्म के समय मस्तिष्क में कम आक्सीजन भी इसका एक कारण है.

 

Parent’s age

कई शोध मे पाया गया है की ज़्यादा उम्र के माता-पिता से हुए बच्चे को autism होने की संभावना ज्यादा रहती है।

 

आटिज्‍म का निदान  – Diagnosis of Autism in Hindi

मानसिक समस्या के Diagnosis का काम मनोचिकित्सक और मनोविज्ञानिक की टीम मिल कर करती है. लक्षणों को देख कर मनोचिकित्सक कुछ दवाई लिखते है और मनोविज्ञानिक उन पर मनोवैज्ञानिक टेस्ट और थेरेपी का उपयोग करते है।  भारत में आटिज्‍म के निदान के लिए  मुख्यतः जिस टूल का उपयोग किया जाता है उसका नाम है – ISAA (indian scale for assessment of autism) और CARS (childhood autism rating scale).

इसके माध्यम से पता लगाया जाता है की बच्चे मे आटिज्‍म के लक्षण है या नहीं और उसकी के अनुसार उसकी चिकित्सा की जाती है।

 

आटिज्म का इलाज – AUTISM Treatment in hindi

वर्तमान में आटिज्म का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, रिसर्च से पता चलता है कि शुरुआती intervention बच्चे के विकास में सुधार कर सकते है। Early intervention जन्म से 3 वर्ष तक के बच्चों को महत्वपूर्ण स्किल्स सिखाने में मदद करते हैं। इनमे  बात करने, चलने और दूसरों के साथ घुलने मिलने के कोशल सिखाने की चिकित्सा शामिल हो सकती है।

 

  • आटिज्म के उपचार के लिए मनोचिकित्सक और मनोविज्ञानिक साथ मिल कर काम करते है।  मनोचिकित्सक दवाइयों से इलाज करते है जिससे रोगी के गुस्से, repetitive behavior, hyperactivity और attention problems को दूर किया जा सके तो वही मनोविज्ञानिक थेरेपी का उपयोग करते है जिससे रोगी को life skills  सिखाई जा सके ताकि वह अपना दैनिक कार्य अपने आप कर सके जैसे बोलना, साफ़ सफाई करना  और घर में छोटी मोटी मदद कर देना आदि.

 

  • जो भी चुनौतीपर्ण व्यवहार है जैसे बात न सुनना या मानना, लोगो के बीच अपने कपडे उतारना, हाथ पैर मारना , तालियाँ बजाना आदि. ऐसे व्यवहार को नियंत्रण में करने के लिए Behavioral modification का इस्तेमाल किया जाता है।

 

  • सोशल स्किल ( Hi, Hello, Thank you, Sorry, By-By etc.) के बारे में सिखाना।

 

  • माता-पिता की काउंसलिंग- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चो के माता पिता को भी काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है ताकि  उन्हें यह समझाया जा सके की वे अपने बच्चे की परिस्थिति को स्वीकार करे और इफेक्टिव तरीके से उनके साथ डील कर सके।

 

दोस्तो अगर आपको लगता है की आपके बच्चो या आपके किसी करीबी को यह समस्या है तो आपको मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए उन्हे सुझाव देना है ताकि समस्या को कुछ तक प्रबंधित किया जा सके।

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लेखक के बारे मे 

school counselor in hindi

 

शुभम प्रजापति एक स्कूल काउन्सलर है जो बच्चो की मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक समस्याओ को दूर करने का प्रयास करते है । ये छात्रों और अभिभावकों के साथ मिलकर उनके शैक्षणिक, व्यवहारिक और सामाजिक विकास में मार्गदर्शन करते है

 

 

 

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