आज हम आपके साथ भारत के कुछ great leaders के जीवन के कुछ किस्सो के बारे में बतायेंगे जिन्हें पढ़कर आप समझ जाएंगे की आखिर उनका व्यक्तित्व इतना प्रसिद्ध किस वजह से था. यह उन व्यक्तियों में से एक हैं जिनकी आज के समय में भारत को बहुत जरुरत हैं.
indian great leaders Story 1 – बाल गंगाधर तिलक
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक बार अपने दफ्तर में बैठे एक राष्ट्रीय महत्व के प्रश्न पर विचार विमर्श कर रहे थे। वह प्रश्न बडा ही पेचीदा और देश के भविष्य से जुडा हुआ था। अचानक तिलक के पास एक व्यक्ति हांफता हुआ आया और उनसे बोला- आपके पुत्र की तबीयत बहुत खराब हो गई है, आपको तुरन्त घर बुलाया है।
तिलक ने हां की मुद्रा में सिर हिला दिया और फिर सहयोगियों से उसी प्रश्न पर विचार करने लगे कुछ देर बाद एक सहयोगी को याद आया कि तिलक-जी को घर जाना था यह सोच उसने तिलक जी को कहा आप इस समय घर पहूंचिए, हम लोग कल दोबारा इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर लेंगे।
तिलक ने कहा- मैंने डाक्टर को खबर भिजवाई है जो भी होना होगा वह होकर ही रहेगा। मैं उसे रोक नही पाउंगा। जबकि यह प्रश्न उस मामले से कई अधिक आवश्यक है। क्योंकि यह सारे देश से जुडा हुआ प्रश्न है। यह कहकर वह फिर उसी समस्या पर विचार करने लगे। विचार-विमर्श बहुत देर तक चलता रहा, कईं ऐसे मुद्दे थे जिन पर बहुत विचार करने की आवश्यकता थी।
ऐसे में लोकमान्य तिलक जी को वहां बहुत अधिक समय लग गया। अन्ततः उस समस्या का सही हल खोज निकाला गया, शाम को जब थके हारे घर पहूं
indian great leaders Story 2 – स्पष्टवादी तिलक
बाल्यावस्था से ही बालगंगाधर तिलक निडर व सत्यवादी थे |
एक दिन उनकी कक्षा के छात्रों ने मूंगफली खाकर छिलके फर्श पर ही डाल दिए | शिक्षक ने जब कक्षा में प्रवेश किया तो फर्श पर बिखरे छिलकों को देख कर छात्रों से पूछा, ‘मूंगफली के छिलके किसने डाले हैं ?’
सब छात्र चुप रहे | कोई कुछ नहीं बोला, तब शिक्षक ने सबको खड़ा कर दिया और क्रोधित होकर सबके हाथों पर दो-दो डंडे मारे |
जब तिलक का नंबर आया तो वह दो टूक शब्दों में बोले, ‘सर, मैंने मूंगफली खाई ही नहीं तब मेरे द्वारा छिलके फेंकने का सवाल ही कहाँ उठता है, इसलिए न मै दोषी हूँ और न ही मार खाऊंगा |’
‘तब मूंगफली खाकर यह छिलके किसने फेंके… बताओ ?’
‘सर, में किसी की चुगलखोरी भी नहीं करता, यह मुझे पसंद नहीं है |
इसलिए किसी अन्य छात्र का नाम भी नहीं बताऊंगा और मार तो में बिलकुल भी नहीं खाऊंगा |’
इस स्पष्टवादिता से उनका स्कुल अवश्य छूट गया | लेकिन इसी के बल पर भविष्य में वह भारत माँ के महान सपूत अवश्य बन गए |
indian great leaders Story 3-सरदार पटेल
सरदार वल्ल्भभाई पटेल फौजीदारी के सुप्रसिध्द वकील थे |
वह एक केस की पेशी कर रहे थे |
मसला काफी संगीन था,
जरा भी असावधानी बरती जाती तो संभव था की
अभियुक्त को फांसी की सजा हो जाती |
इसलिए वह गंभीर होकर जिरह किए जा रहे थे |
उसी समय किसी व्यक्ति ने उनके नाम का एक तार हाथ में था दिया |
उन्होंने तार को पढ़ा और जेब में रख कर पून: पेशी करने लगे |
अदालत उठी तो वह जल्दी-जल्दी अहाते से बाहर निकले |
उनको हड़बड़ाया देख उनके साथी वकील ने पुछा,
‘ क्या बात है ? तार किस का था ?’
वह बोले, ‘मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है ?
तार उसी के बारे में था |’ साथी वकील बोला, ‘कमाल है |
इतना बड़ा हादसा हो गया और तुम बहस करते रहे |
‘ सरदार पटेल बोले,
‘ करता भी क्या ?
वह तो जा ही चुकी थी |
क्या इसके पीछे उस अभियुक्त को भी चले जाने देता ?
indian great leaders Story 4 – बालक राजेंद्र की निर्भीकता
उस किशोर को किसी कार्यवश गाँव से शहर की और जाना था | उसकी माँ ने उसे पांच सौ रुपये दिए और विदा करते हुए कहा, ‘बेटा, यह संसार सत्य पर ही टिका है, अत: सत्य को कभी मत छोड़ना |’
उस किशोर ने माँ के चरणो का स्पर्श किया और आशीर्वाद ले शहर की और चल पड़ा | मार्ग में कुछ लूटेरों ने उसे घेरकर कहा, ‘तेरे पास जो कुछ भी है, वह सब निकाल |’
किशोर ने बिना किसी हिचकिचाहट के पांच सौ रुपये निकाल कर दिखा दिए |
लूटेरों ने उसकी तब भी तलाशी ली | लेकिन उन्हें कुछ और न मिला | तब वह उसे अपने सरदार के पास ले गए |
सारा वाकया सुनकर लूटेरों के सरदार को भी हैरानी हुई | उसने उस किशोर को गले लगते हूए कहा, धन्य है वह माँ जिसने तुम जैसे सच्चे व ईमानदार बालक को जन्म दिया |’
उस दिन के बाद से उन लूटेरों ने लूटपाट करना छोड़ दिया और सामान्य जीवन जीने की प्रतिज्ञा की | वह किशोर आगे चलकर स्वतंत्रता सेनानी व इस देश का प्रथम राष्ट्रपति बना जिसका नाम था – राजेंद्र प्रसाद |
prithviraj kapoor story-मिटटी का मोल – The value of Mud
प्रसिध्द फिल्म अभिनेता प्राविराज कपूर का पृथ्वी थिएटर्स/theaters उन दिनों घाटी में चल रहा था | पृथ्वीराज कपूर ने क्षतिपूर्ति का एक नायाब तरीका निकाला | जब शो खत्म होता तो वह थिएटर के द्वार पर झोला फैलाकर बैठ जाते थे |
इस तरह जिसकी जैसी श्रद्धा होती, उस झोले में दानस्वरूप कुछ-न-कुछ डाल देता था | एक दिन एक युवक ने मुठ्ठी भर मिटटी उठाई और झोली में डालने लगा | तभी पृथ्वीराज ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा. ‘मित्र! भारत की इस मिटटी के मूल्य से तुम वाकिफ नहीं हो |
हम सब इसी मिटटी में पैदा हुए हैं | मेहरबानी करके इसे इस झोले में न डालकर मेरे सिर पर डाल दो | और वह मिटटी उन्होंने अपने सिर पर ही डलवाई | उनकी इस भावना को देख वह युवक पानी-पानी हो गया | उसकी जेब में जितने भी रुपये थे वह भी उसने दान कर दिए |
यह story हमारे साथ Sheenu Sharma ने शेयर की है. हम इस स्टोरी के लिए उनका आभार प्रकट करते है
Name: Sheenu Sharma
Blog: hindimind.in
Interest – i likes to read and write inspirational stories and many other things.
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