स्कूल लाइफ हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है जहाँ मानसिक विकास के साथ साथ हमारे व्यक्तित्व का भी विकास होता है. स्कूल में जो बीज बोए जाते है बड़े होने पर उसी प्रकार का व्यक्तित्व बनता है लेकिन तकनीक के बढ़ते प्रभाव के कारण कई बच्चे खुद को जाने- अनजाने में बर्बाद करते जा रहे है. वही तकनीक के प्रभावों के साथ साथ और भी कई समस्याए है जिनका सामने school जाने वाले बच्चे करते है.
स्कूल लाइफ में बच्चे मुख्यतः तीन प्रकार की समस्याओ का सामना करते है- Academic Problems, Emotional / social Problems और Mental / Behavioral Problems
Academic Problems
school में बच्चे पढाई करते समय कई समस्याओ का सामना करते है जैसे कि चीज़े याद न होना, याद कर के भूल जाना, परीक्षा के समय घबराहट होना, ठीक से ध्यान न लगा पाना. इसके अलावा और भी कई समस्याएँ है जिससे बच्चे की पढाई पर असर पढता है
Emotional / social Problems
पढाई पर बढ़ते फोकस के चक्कर में कई बार बच्चे बहुत व्यस्त हो जाते है जिसकी वजह से या तो घर से बाहर नही जाते या फिर बहुत कम बाहर जाते है। शारीरिक खेल और अनुभव बहुत कम करते है, पढाई में व्यस्त रहने के कारण लोगो से बातचीत भी बहुत कम हो जाती है जो कही न कही हमारे शारीरिक विकास पर असर करता है। वही हम बात करे emotional problem की तो बच्चो को यदि कोई टीचर या घर पर कोई बड़ा कुछ कह दे तो उसे शेयर करने के बजाये मन ही मन उसके बारे में सोच कर परेशान होते रहते है.
Mental / Behavioral Problems
school के समय बच्चो का शारीरिक और मानसिक विकास बहुत जल्दी जल्दी होता है इस समय बच्चो के व्यवहार में परिवर्तन होता है और यह अधिकतर बच्चो में सामान्य है। गुस्सा करना, छोटी- छोटी बातों पर चिड जाना, नए स्टाइल के बाल बनाना, कपड़ो पर अधिक ध्यान देना और अगर कोई टोके तो मन में उसके लिए गुस्सा लाना. इसके अलावा कई मानसिक समस्या है जो हर किसी को तो नही होती पर हर कोई उसके निशाने पर रहता है।
बच्चो में होने वाली मानसिक समस्याएँ है –
ADHD – एक जगह टिक कर न बैठना , एक जगह फोकस न करना और हमेशा उर्जावान बने रहना.
Learning Disabilitie;- ठीक से शब्दों को न पढ़ पाना या ठीक से न लिख पाना.
mental Retardation – कई चीजों को बहुत देरी से सीखना, सीखी हुई चीजों को इस्तेमाल न कर पाना.
Autism – एक प्रकार की विकासात्मक बीमारी
Conduct Disorder- क्लास में हमेशा लड़ाई-झगडा करना, चीज़े तोड़फोड़ करना, दुसरो को परेशान करने में ख़ुशी महसूस होना.
यहाँ वो सामान्य समस्याएँ है जिसका आज की तारीख में सामना लगभग हर स्कूल जाने वाला छात्र कर रहा है इन्ही समस्याओ का सामना करने के लिए school counselor या स्पेशल एजुकेटर को नियुक्त जाता है. वह किस प्रकार काम करते है यह जानने से पहले हम यह जान लेते है कि यह कब से शुरू हुआ.
कैसे हुई school counseling की शुरुआत?
साल 1900 के शुरुआती दौर में अमेरिका के स्कूल में बच्चो के लिए उनकी पढाई में एक अतिरिक्त मदद की जरूरत को समझते हुए मनोविज्ञानिको से परामर्श शुरू किये गए और school counselor का प्रस्ताव लाया गया. Jesse B. Davis जिन्हें अमेरिका में पहला स्कूल काउन्सलर माना जाता है जिन्होंने स्कूल में गाइडेंस प्रोग्राम शुरू किया और फिर धीरे धीरे इसे पुरे यूनाइटेड स्टेट में शुरू किया गया.
भारत में वैसे तो 1940 के आस-पास स्कूल काउंसलिंग पर ध्यान देना शुरू किया गया. किन्तु आज भी स्कूल काउंसलिंग को एक नए व्यवसाय के रूप में देखा जाता है। बीते कुछ समय में स्कूल जाने वाले छात्रो के साथ कुछ हादसे हुए जिसके बाद सरकार एवं शिक्षा विभाग ने हर स्कूल में काउन्सलर की नियुक्ति को अनिवार्य किया है।
Role of the School Counselor in hindi
एक स्कूल काउन्सलर की कई जिम्मेदारियां होती है जिमसे मुख्य है:-
- स्कूल स्टाफ को, बच्चो के क्लासरूम को, व्यवहार को मैनेज करना और इम्प्रोव करने में मदद करना.
- हर छात्र को personal/ social / academic समस्यां होने पर व्यक्तिगत काउंसलिंग देना.
- छात्र की कमियों, खूबियों और योग्यता को पहचानना और उसके बाद उसे कैरियर गाइडेंस देना.
- स्कूल और समाज में होने वाली हिंसा को समझना और बच्चो को समझाना.
- बच्चो की विशेष जरुरतो को समझना और उनसे डील करना.
- लाइफ स्किल, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, टाइम मैनेजमेंट के बारे में बच्चो को बताना.
इसके अलावा भी school counselor की कई और जिम्मेदारियां होती है लेकिन इसके साथ साथ एक स्कूल काउन्सलर को कई चुनौतियों सामना करना पढता है जैसे .
जागरूकता में कमी – स्कूल काउन्सलर के काम को लेकर लोगो में हमेशा दुविधा बनी रहती है क्योकि लोग इसके बारे में न तो पढ़ते है न ही समझते है.
कई अलग अलग प्रकार के केस– भारत जैसे बड़े देश में जहा कई प्रकार के अलग अलग लाइफ स्टाइल है तो अलग अलग प्रकार की समस्यां भी है जिनका समाधान करना या जिनसे डील करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है
हर कोई दुसरे को बदलना चाहता है लेकिन काउंसलिंग इसलिए होती है ताकि हम खुद में जरूरी परिवर्तन ला सके.
इस लेख में स्कूल काउंसलिंग के कुछ मोटे-मोटे पहलुओ को रखा गया है ताकि कोई समस्यां होने पर आप आपके बच्चो के लिए किसी स्कूल काउन्सलर की मदद ले सके.
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लेखक के बारे मे
शुभम प्रजापति
दिल्ली विश्वविद्यालय से एप्लाइड साइकॉलजी में स्नातक और स्नातकोत्तर. वर्तमान में हिंडन पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में स्कूल काउंसलर रूप में काम कर रहे हैं।
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