कहानीकार की कहानी कहना किसी कहानी से कम नही है ये कहानी है एक फाइटर की, जो अपनी कहानी कहने के लिए बॉलीवुड में मशहूर है. या कहे की हिंदुस्तान में मशहूर है हम बात कर रहे है bollywood के मशहूर डायरेक्टर anurag basu (अनुराग बासु) की जिनकी खुद एक प्रेरणादायक कहानी है. कैसे उनकी जिंदगी के 3 साल उन्होंने एक गंभीर बीमारी के साथ गुजारे और उस दौरान ऐसा क्या किया जो उनको बीमारी से लड़ने की हिम्मत देता रहा.
anurag basu fight against cancer
2004 में जब anurag basu बासु अपनी फिल “तुमसा नही देखा” के डायरेक्शन में व्यस्त थे तब अचानक से पता चला की उहने leukemia (ल्यूकेमिया) नाम का कैंसर है. और उन्होंने वो फिल्म अधूरी छोड़ दी जिसे बाद में महेश भट्ट ने पूरा किया.
जब वो डॉक्टर के पास गए तो डाक्टर का कहना था की उनके पास 2 से 3 महीने का ही वक्त बचा है और जल्दी से इलाज शुरू करना होगा. इस दौरान उनकी (chemotherapy ) कीमोथेरेपी शुरु हो गई और सर के बाल लगभग झड चुके थे. वो लगभग 17 दिन तक वेंटीलेटर पर रहे. समय कम था लेकिन इरादे मजबूत. उस वक्त तो वह अपना ज्यादातर समय बच्चो को खेलता हुआ देख कर बिताते थे और उन बच्चो के साथ उनका हौसला और बढ़ जाता था
उन दिनों भी वो अपने काम को लेकर काफी गंभीर रहे और अपने काम के बारे में सोचते हुए उन्होंने उन 3 सालो में 2 बड़ी फिल्मे “गैंगस्टर (gangster)” और “लाइफ इन ए मेट्रो (life in a metro)” भी लिख डाली. उनको विश्वास था की मैं जल्दी ठीक होकर ये दोनों फिल्मे खुद बनाऊंगा. और 3 साल बाद वो अपनी लड़ाई से जीते और इन दो फिल्मो के साथ कई और बड़ी फिल्मे भी बनाई.
अनुराग बासु ने खुद पर भरोसा कर, अपनी आधी लड़ाई तो वही जीत ली थी उनकी इच्छा शक्ति इतनी मजबूत थी की वह शायद कभी कमजोर नही पड़े और आज वो बॉलीवुड के बड़े डायरेक्टर्स में से एक है जो दिल की कहनी कहना जानते है….
दोस्तों आपमें से कई लोगो ने anurag basu का शायद नाम तक न सुना हो लेकिन हमने anurag basu की कहानी के जरिये उन सभी लोगो को यह बताने की कोशिश की है जो बीमारी या परिस्थिति का सामने घुटने टेक देते है और किस्मत या भाग्य का लिखा मानकर अपने सपनो के साथ समझोता कर लेते है. कोई भी बीमारी, परिस्थिति या रूकावट तब तक हमें नहीं रोक सकती जब तक हममे उम्मीद और हौसले खत्म न हो जाये. जब एक छोटा बच्चा खेलते हुए गिर जाता है तो वह कुछ देर तक रोता है और फिर वही खेल खेलता है बिना यह सोचे की उसे चोट दुबारा लग सकती है. जबकि एक आदमी को जब एक बार झटका लगता है तो वह उस काम को करने से पहले कई बार सोचता है चाहे वह काम सही क्यों न हो. इन दोनों में सिर्फ एक चीज का फर्क है और वो है हौसले और विश्वास का. वह इंसान जो कुछ सीखना या करना चाहता है वह कुछ देर की लिए रुक जरुर सकता है लेकिन फिर उतनी तेजी से अपनी मंजिल की ओर बड़ता है. यहाँ anurag basu को एक symbol लेकर यह बताने की कोशिश की गई है अगर आपको अपने लक्ष्य पुरे करने है तो कभी हार न माने चाहे रूकावट कितनी भी बड़ी हो
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बहुत अच्छी मोटिवेशनल स्टोरी है। सेयर करने के लिए आपका धन्यवाद।