गर्मियों का मौसम है, तेज धुप ने आम लोगो के लिये ओर भी ज्यादा मुश्किलें बड़ा दी है लेकिन इस मौसम की सबसे खराब समस्या है लू लगना यानि heat stroke. ऐसे मे पेरेंट्स भी बच्चो को गर्मियों की छुट्टियों मे बाहर खेलने से रोकते है ताकि लू से बचा जा सके. लेकिन क्या आप जानते है की आखिर लू लगती कैसे है? क्यों धुप से लू लगने का खतरा बढ़ जाता है? अगर नही तो आइये जानते है
लू लगने का क्या मतलब है – what is heat stroke in hindi
गर्मियों के दौरान आमतोर पर मई – जून मे उत्तर-पूर्व में चलने वाली तेज उष्ण तथा शुष्क हवाओं को लू कहतें हैं। इसे heat stroke या sunstroke के नाम से भी जाना जाता है. आप लोगो ने कई बार सुना होगा “गर्मी इसके दिमाग में चढ़ गई है” बस वही है लू लगना. लेकिन इसका मतबल सिर्फ बुखार होना नही, बल्कि बुखार से कई गुना बढकर है. दरअसल बुखार होना लू लगने का सही मतलब नही है. तेज गर्मी मे जब शरीर मे नमक और पानी की कमी हो जाती है तब व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ जाता है जिससे शरीर मे ऐंठन और बेहोशी की स्थिति बन जाती है जिसे लू लगना कहते है.
आज हम इस लेख में शारीरिक तापमान, बुखार, लू लगना जैसे सवालों पर चर्चा करेंगे.
शरीर का तापमान
आमतौर पर हम शरीर का तापमान जानने के लिए थर्मामीटर का उपयोग करते है जिसे बगल में रख कर या मुँह में जीभ के नीचे दबा कर मापा जाता है. हम आपको बता दे बगल का तापमान मुँह के तापमान की तुलना में 0.4 डिग्री सेल्सियस कम होता है.
हमारे शरीर का तापमान समान्य रूप से 36.5 से 37.5 डिग्री सेल्सियस (97.7 से 99.5 डिग्री फारेनहाइट) होता है और इसे इस सीमा में रखने के लिए हमारी दिमाग में एक सिस्टम 24 घंटे काम करता रहता है हालाकि ये तापमान दिन भर बदलता रहता है जैसे सुबह के समय ये तापमान 98.9 फारेनहाइट और शाम को 99.9 हो सकता है और यदि शारीर का तापमान इससे बढ़ जाता है तो व्यक्ति को बुखार हो जाता है.
कैसे होता है बुखार – What causes a fever
हमारे शारीर से 24 घंटे गर्मी निकलती रहती है. शरीर में कोशिकाएं अपना काम करती रहती है. हम चाहे चुप बैठे हो या सो रहे हो तो भी हमारा दिमाग, गुर्दा, दिल, फेफड़े लगातार काम करते रहते है और इस काम को करते रहने से हमारे अंदर निरंतर गर्मी पैदा होती रहती है और इस गर्मी को अगर नियंत्रित न किया जाए तो हमारा शरीर इतना गर्म हो जाएगा की हम मर सकते है.
इसलिए हमारे शरीर में एक ताप नियंत्रक लगा होता होता है जिसे थर्मोस्टेट कहते है जो हमारे मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस में है. यह हमारे शरीर की गर्मी को साथ-साथ बाहर भी निकलता रहता है जैसे पसीने के द्वारा, साँस के द्वारा आदि जिससे हमारे शरीर का तापमान समान्य (97.7 से 99.5 डिग्री फारेनहाइट) बना रहता है. यानी उस थर्मोस्टेट में एक पैमाना सेट है जो हमारे शरीर के तापमान को 97.7 से 99.5 डिग्री फारेनहाइट तक रखता है.
टायफॉयड, निमोनिया, आदि संक्रमणों में बैक्टीरिया के टॉक्सिक कणों (इंडोटॉक्सिन, पायरोजन्स, सायटोकॉइन्स आदि) के दुष्प्रभाव में हाइपोथैलेमस का थर्मोस्टेट 102-103 डिग्री फारेनहाइट या अधिक पर सेट हो जाता है. तब हमें उतना तेज बुखार आता है और थर्मामीटर से मापने पर हमे पता चल जाता है कि हमारे शरीर का तापमान बढ़ गया है.
डॉक्टर हमे संक्रमणों को खत्म करने की दवाई के साथ पैरासिटामोल आदि दवाई देता है जो हाइपोथैलेमस के थर्मोस्टेट का बढ़ा हुआ पैमाना कम करने में मदद करती है.
लू लगना और बुखार में क्या अंतर है.. Difference between heat stroke and fever in hindi
हम आपको बता दे कि एक अनुमान के मुताबिक लू लगने वाले लगभग 63% लोगो की मौत हो जाती है और यह तब होता है जब हाइपोथैलेमस का थर्मोस्टेट बिल्कुल काम करना बंद कर देता है. ऊपर हमने बताया की हाइपोथैलेमस के थर्मोस्टेट का पैमान संक्रमणों के कारण सामान्य तापमान से बढ़ जाता है तो बुखार जैसी स्थिति हो जाती है लेकिन जब हाइपोथैलेमस का थर्मोस्टेट खराब हो जाता है तो उसे लू लगना या हीट स्ट्रोक भी कहते है. यह ऐसा ही है जैसे हमारे शरीर को ठण्डा रखने की मशीन खराब हो गई हो.
कैसे लगती है लू.. Causes of heat stroke in hindi
आसपास या वातावरण में ज्यादा गर्मी होने से या शारीरिक काम करने से हमारे शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और हाइपोथैलेमस का थर्मोस्टेट हमारे शरीर की गर्मी को त्वचा, पसीने, साँस आदि के द्वारा बाहर निकाल देता है जिससे हमारे शरीर का तापमान ज्यादा नही बढ़ता. लेकिन इस थर्मोस्टेट के काम करने की एक सीमा है यदि वो सीमा पार हो जाए तो यह सिस्टम खराब हो जाता है जैसे हमारा शरीर एक घंटे में ढाई लीटर पसीना निकाल सकता है. और इसमें भी शरीर को नमक और पानी की आवशयकता होती है. दिनभर गर्म वातारण में रहने से या उसी गर्म वातावरण में शारीरक काम करने से एक समय के बाद हमारा ये सिस्टम फैल हो जाता है. जिसके कारण हमारे शरीर का तापमान बाहर की गर्मी के हवाले हो जाता है और हमे बुखार होने लगता है. शुरू में कम बुखार होता है और बाद में शरीर का तापमान बढ़ता जाता है जिस पर पैरासिटामोल आदि दवाईयां भी काम करना बंद कर देती है.
कौन लोग हो सकते है लू का शिकार..
वैसे तो धुप में या गर्मी में लगातार मेहनत करने से किसी को भी लू लग सकती है लेकिन कुछ लोगो को गर्मी में खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए:
छोटी उम्र के बच्चो को और बूढ़े व्यक्ति को लू लगने का खतरा ज्यादा होता है. उनके शरीर में ताप नियंत्रक थोडा कमजोर होता है जैसे
मोटे लोगो को.
दिल के मरीजो को .
शरीरिक रूप से कमजोर लोगो को.
वो लोग जो ज्यादा हाई डोस या नशे की दवाई या शराब आदि रोज लेते है.
लू लगने के लक्षण – causes of heat stroke in hindi
गर्मी में काम करते हुए आँखों के आगे अधेरा आना या अचानक चक्कर खा कर गिर जाना.
मांसपेशियों में खिचाव होना या दर्द होना.
बेचैनी घबराहट या अजीब सा व्यवहार करना.
शरीर का तापमान बढ़ना.
प्यास लगना, सिर दर्द होना या कमजोरी महसूस होना.
हाथ और पैरों के तलुओं में जलन
जरुरी नही की ये सभी लक्षण एक साथ दिखाई दे. ये सभी लक्षण बुखार में भी होते है इसलिए ये ज्यादा जरूरी है कि इसकी जाँच सही तरीके से करवाए. और हाँ एक जरूरी बात अगर इन सभी लक्षणों के साथ आपको पसीना आ रहा है तो ये अच्छी बात है क्योकि ये पसीना बताता है कि अभी आपके शरीर का ताप नियंत्रण सही काम कर रहा है.
जानने योग्य बाते….
लू से होने वाले बुखार में बुखार कम करने वाली दवा जैसे पैरासिटामोल आदि न खाए या फिर अगर उनसे बुखार नही उतर रहा है तो सीधा डॉक्टर के पास जा कर लू की जाँच करवा ले.
लू एकदम से हीट स्ट्रोक नही होती. हीट स्ट्रोक लू का अंतिम स्टेज है. जरूरी नही है लू एकदम से अंतिम स्टेज पर हो. इसके अलावा भी लू के कई और स्टेज होते है जैसे हीट सिन्कोप या हीट एक्जॉशन आदि जिसे हल्की लू भी कहते है.
तो दोस्तों उम्मीद करते है यह आर्टिकल आपके लिये फायेदेमंद साबित होगा. अगर आपके कोई सवाल या सुझाव है तो कृपया कमेंट्स के माध्यम से अपनी बात रखे और हमारे साथ जुड़े रहने के लिये हमारा फेसबुक पेज like करें
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bahut acchi post hai thanks for sharing
लू का रामबाण उपचार हैं एक सूती कपड़े को गीला कर निचोड़ दे जिससे उसमे पानी अधिक मात्रा में ना रहें, फिर रोगी को केवल अंडरवियर में रहने दें और उसे पहले पीठ के बल लिटाकर सूती वस्त्र को रोगी के शरीर से सटाकर बालों से पैर के पन्जों तक 4 बार ले जाये यही विधि छाती के बल लिटाकर 3 बार करें।
प्रक्रिया में दोनों स्थितियों में हाथ एवं पैरों के तलवों को भी बारी-बारी ऊपर व नीचे रखें।
ततपश्चात् रोगी को कपड़े पहनने दे फिर विश्राम करें साथ ही योग्य चिकित्सक से सलाह लें व उससे उपचार भी जारी रखे।