कबीर दास जी ने सत्य ही कहा है गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान हमेशा ऊँचा रहा है, ये वही देश है जहाँ गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर अपने गुरु को दे दिया था. बिना गुरु के कामयाबी पाना बहुत कठिन होता है, जो हमें अच्छी सीख दे वो हमारा गुरु है, अगर जीवन में कुछ करना है तो गुरु के कहे अनुसार चलना जरूरी है. गुरु मार्गदर्शक है, बिना गुरु के ज्यादा अवसर होता है की हम अपने पथ से भटक जाए. अक्सर घमंड में हम गुरु की महत्ता को कम कर देते है, और गुरु की कही बात का पालन नहीं करते इसलिए आज हम आपको एक कहानी बतायेंगे जिसमे गुरु के महत्व को बताया गया है.
गुरु के महत्व की कहानी
एक बार स्कूल का एक अध्यापक अपने शिष्यों को सूरजमुखी के बीज देकर उसका पौधा उगाने और उसकी देखभाल करने के लिए कहते है. सभी शिष्यों को यह कार्य ज्यादा पसंद नहीं आता लेकिन इनमे से एक शिष्य को ये कार्य बहुत बहुत प्यारा लगता है और वह बड़ी उत्सुकता से इन बीजो को बोता है और कई दिनों तक इनकी देखभाल करता है.
जब पौधा उगना शुरू हो जाता है तब लड़का अपना संयम खो देता है और अपने अध्यापक के पास जाकर कहता है क्या मै इस पौधे को उखाड़ सकता हूँ, अध्यापक अपने शिष्य से कहता है की उसे अपने पौधे को लगा रहने देना चाहिए और उसकी देखभाल करते रहनी चाहिए इससे वो केवल एक सूरजमुखी से कई बीज ले पायेगा. इससे लड़का निराश हो जाता है लेकिन सूरजमुखी की देखभाल करता रहता है, फिर भी वो इसे उखाड़ने के लिए बेताब होता रहता है और अपने अध्यापक से इसे उखाड़ने की अनुमति मांगता रहता है, इसके बावजूद अध्यापक उसे संयम रखने को कहते है. लेकिन जैसे ही सूरजमुखी का पहला बीज निकलता है लड़का उस पौधे को तोड़ देता है ताकि उसे खा सके लेकिन पौधा अभी हरा ही होता है और बीज अभी पका हुआ नहीं होता, इसलिए वह उसे नहीं खा पाता. जिससे ये लड़का पौधे को तबाह कर देता है. इस प्रकार जिस सूरजमुखी के पौधे के लिए वह इतनी मेहनत करता है और उसकी कई समय तक देखभाल करता है अपने गुरु का कहा ना मानने पर उसमे असफल रहता है.
बाकी सब शिष्य अपने अध्यापक की कही बात के अनुसार सूरजमुखी का पौधा उगाते है. अपने साथियों के विशाल सूरजमुखी के पौधे देखकर वह बहुत क्रोधित होता है और अपने अध्यापक से कहता है, इस कार्य के लिए सबसे उत्सुक मै ही था लेकिन आपकी कही बात ना मानकर मेरी सारी मेहनत और समय की बर्बादी हुई. अत: अब से मै कार्य में हमेशा संयम रखूँगा और आपकी कही बात का पालन करूँगा.
ज्ञान होना एक बात है और उसे व्यवहार में लाना एक कला है जिसे skills कहा जाता है. जिसे ये कला आती है उसके लिए जिन्दगी में सभी मुश्किल काम आसान लगने लगते है और सफलता उनके कदमो में होती है. ज्ञान अनुभवों, कामयाबियो, असफलताओ से ग्रहण किया जाता है इसलिए ज्ञान कही से भी मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए. जो आपको अच्छा ज्ञान दे उस गुरु का स्थान ऊँचा है, उसकी महत्ता उसके ज्ञान से पहचानी जानी चाहिए ना की उसकी व्यक्तिगत कामयाबियो से तुलना करनी चाहिए. ज्ञान को ग्रहण कर उसका इस्तेमाल करना आना चाहिए, तभी आप सफलताये प्राप्त कर पायेंगे.