Why mahashivratri celebrated in hindi – क्यों मनाया जाता है शिवरात्रि का त्यौहार
महाशिवरात्रि /mahashivratri भगवान शिव का त्यौहार है जिसका हर शिव भक्त बेसब्री से इंतजार करते है और शिव की भक्ति और भांग के रंग में मग्न हो जाते है.. । यह त्यौहार हिन्दू तिथि के हिसाब से फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी/चतुर्दशी को मनाया जाता है । हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्यरात्रि मे भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे । इसीलिए इस दिन को mahashivratri/महाशिवरात्रि या शिवरात्रि कहा जाता है। यह भी माना जाता है की इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पुजा करते है। शिवरात्रि के व्रत से एक पौराणिक कथा भी जुडी हैं।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा – story of mahashivratri in hindi
प्राचीन काल की बात है. एक गांव में गुरूद्रूह नाम का एक शिकारी रहता था। जानवरो का शिकार करके वह अपने परिवार का पालन पौषण किया करता था ।
शिवरात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए गया, तब पूरे दिन शिकार खोजने के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला, परेशान होकर वह एक तालाब के पास गया और तालाब के किनारे एक पेड पर अपने साथ पीने के लिए थोडा सा पानी लेकर चढ गया । वह “बेल-पत्र” का पेड़ था और ठीक इसके नीचे एक प्राकर्तिक शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से से ढका हुआ था जिसकी वजह से वह शिवलिंग दिखाई नहीं दे रहा था। अनजाने मे उसके हाथ से कुछ बेल-पत्र एवं पानी की कुछ बूंदे पे़ड के नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और जाने अनजाने में दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और पहले प्रहर की पूजा भी हो गई।
रात की पहली पहर बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
जैसे ही शिकारी ने उसे मारने के लिए अपने धनुष पर तीर चढ़ाया हिरणी ने घबरा कर ऊपर की ओर देखा ओर शिकारी से कांपते हुए स्वर में बोली- ” हे शिकारी मुझे मत मारो।” शिकारी ने कहा – वह मजबूर है क्योकि उसका परिवार भूखा है इसलिए वह अब उसे नहीं छोड सकता। हिरणी ने कहा कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी। तब वह चाहे तो उसका शिकार कर ले। । शिकारी को हिरणी पर दया आ गयी और उसने उसे जाने दिया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी अपने बच्चो के साथ उधर से निकली। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे शिकारी!’ इन बच्चो को मुझे इनके पिता के पास सौप आने दो और उसके बाद तुम चाहो तो मेरा शिकार कर सकते हो. मै तुम्हारे पास स्वयं उपस्थित हो जाउंगी.
शिकारी ने कहा – हे मृग मै विवश हूँ. मुझे अपने बच्चो और पत्नी के खातिर तुम्हरा शिकार करना ही होगा. हिरणी ने कहा – जिस प्रकार तुम्हे अपने बच्चो की चिंता है ठीक उसी प्रकार प्रकार मुझे भी अपने बच्चो की चिंता है. इसलिए मुझे अपने बच्चो की खातिर कुछ समय दे दो. उसके पश्चात् में तुम्हारे सामने खुद आत्मसमर्पित हो जाउंगी.
हिरणी की अपने बच्चो के प्रति आपार ममता को देखकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई और उसे भी जाने दिया.
समय व्यतीत करने के लिए शिकारी बेल के वृष के पते तोड़ तोड़ कर नीचे फैकता गया तभी शिकारी को एक ओर हिरण दिखाई दिया और शिकारी ने उसे मारने हेतु अपना धनुष झट से उठा लिया. शिकारी को देख हिरण ने कहा – अगर तुमने मेरे बच्चो और मेरी पत्नी का शिकार कर दिया है तो कृपया मेरा भी शीर्घ शिकार कर दो और यदि उन्हें जीवनदान दिया है तो मेरे प्राण भी कुछ समय के लिए दे दो ताकि मै अपने बच्चो से एक बार मिल सकू. इसके बाद मै तुम्हे वचन देता हूँ की मै तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा. शिकारी ने उसे भी जाने दिया और कुछ समय के बाद तीनो हिरण शिकारी के सामने उपस्थित हो गए. शिकारी दिनभर भूखा-प्यासा रहा और अंजाने में ही उससे शिवलिंग की पूजा भी हो गई और इस प्रकार शिवरात्रि का व्रत भी संपन्न हो गया. व्रत के प्रभाव से उसका मन पाप मुक्त और निर्मल हो गया और उसने तीनो हिरणों को छोड़ दिया. शिकारी भूतकाल में हुए अपने द्वारा निर्दोष जीवों की हत्या के पश्चाताप से दुखी था. तभी वहा भगवान शिव प्रकट हुए और बोले – आज के बाद तुम्हे ऐसा काम नहीं करना होगा जो तुम्हे पाप और आत्मग्लानी के बोझ तले दबाता जा रहा है. शिकारी ने रोते हुए कहा की ऐसी कृपा मुझ पापी पर क्यों?.
भगवान शकंर ने शिकारी से कहा – आज शिवरात्रि है और तुमने अनजाने में ही सही लेकिन मेरा व्रत और बेलपत्रो से मेरी पूजा की है. इसलिए तुम्हारा कायाकल्प हुआ है और तुम्हारा मन पवित्र हुआ है. जो भी शिवभक्त mahashivratri/महाशिवरात्रि के दिन यह कथा सुनेगा उसे वह सब फल मिलेगा जो तुम्हे मिला है.
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