हमे भगवान के हर फैसले का सम्मान करना चाहिये

हमारे देश में अलग अलग धर्मो के लोग रहते है, वे विभिन्न रूपों में भगवान की आराधना करते है, सभी की भगवान मे आस्था अटूट है. लेकिन अक्सर जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो इसका दोष हम भगवान को देते है ये सोचे बिना की इसके पीछे हमारी कुछ भलाई छिपी हो सकती है. जिस परमपिता ने प्रकृति की रचना और जीव -जन्तुओ का निर्माण किया है, वह उनका बुरा होते हुए कैसे देख सकता है या कर सकता है. इश्वर की नजरो में तो सब उसकी संताने है और सभी का महत्व समान होता है. इश्वर जो भी करता है उसी में सबकी भलाई छिपी है. इसी बात को इस कहानी में शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है.

story on god’s grace – भगवान की कृपा की कहानी

बात उस समय की है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। गोपाल इण्टर कालिज हाथरस में पंडित श्यामलाल शास्त्री जी हमें हिन्दी पढ़ाया करते थे। एक बार उन्होंने क्लास में एक कहानी सुनाई थी जिसे मैं आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ। कहानी इस तरह है-

दो दोस्त पैदल ही कहीं घूमने जा रहे थे। गर्मी की तेज दोपहरी थी। गर्मी से उन दोनों का बुरा हाल था। चलते-चलते दोनों काफी थक गए थे इसलिए कहीं छाया में आराम करने का मन बनाया। थोड़ी दूर और चलने के बाद उन्हें एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया। पेड़ देखकर वे काफी खुश हुए और उस पेड़ के नीचे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए। उस पेड़ की शीतल छाया में आराम करने से उनकी सारी थकान मिट गई। जब उन्हें पूरा सकून मिल गया तभी एक दोस्त ने दूसरे से कहा, “ईश्वर भी कितना अन्यायी है! उसने यह पेड़ तो इतना बड़ा बनाया है परन्तु इसका फल इतना छोटा! यदि इसका फल नारियल की तरह बड़ा होता तो राहगीर उसका पानी पीकर कितना अच्छा महसूस करते।” जैसे ही उसने अपनी बात कहनी खत्म की, तभी एक बरगद का फल उसके सिर पर गिर गया। दूसरा दोस्त उससे तुरंत बोला, “ईश्वर अन्यायी नहीं, हमारी सोच गलत है। हम वही सोचते हैं जो हमें अच्छा लगता है परन्तु ईश्वर हमेशा वही सोचता है जो हमारे लिए अच्छा होता है। अगर उसने इस पेड़ का फल तुम्हारी सोच के अनुसार बनाया होता तो तुम्हारा सिर फट गया होता। तुम डर की वजह से इसकी शीतल छाया का आनंद भी नहीं ले पाते।”
इसलिए याद रखें कि ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना इस हिसाब से की है कि वह जीव,निर्जीव सभी के लिए अच्छी हो। सृष्टि के सभी जीव, निर्जीव परमपिता (ईश्वर) की संतान हैं। जिस तरह एक पिता कभी अपनी संतान का बुरा नहीं चाहता, हमेशा अपनी संतान को खुश देखना चाहता है, ठीक उसी प्रकार परमपिता सम्पूर्ण सृष्टि को खुश देखना चाहता है। वह हमेशा वही करता है जो हमारे लिए अच्छा होता है। हमें ईश्वर के हर फैसले का खुश होकर सम्मान करना चाहिए।


यह कहानी हमारे साथ डी.एस.राजपूत जी ने शेयर की है जिसके लिए हम उनका आभार प्रकट करते है

भगवान

नाम – डी.एस.राजपूत

परिचय –  डी.एस.राजपूत जी 65 वर्षीय सामान्य व्यक्ति है और वसुन्धरा, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में रहते है.

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