आत्मा क्या है? ब्रह्मांड का सबसे बड़ा प्रश्न what is soul in hindi

दोस्तों हमने अपने जीवन मे कभी ना कभी आत्मा शब्द के बारे में जरूर सुना होगा। ऐसा माना जाता है की हमारे शरीर मे आत्मा होती है, लेकिन क्या आप जानते है की ये होती क्या है, इसकी उत्पत्ति कैसे होती है, मानव शरीर के साथ इसका क्या संबंध है, इसकी प्रकृति क्या है, क्या इसकी भी मृत्यु होती है. प्राचीन काल से ही दार्शनिको और धर्मो ने देश और विदेश से आत्मा और उसके अस्तित्व को लेकर तमाम व्यख्याये आयी है. तो दोस्तों आज हम इस पोस्ट मे इसी बारे मे जानेंगे  और विभिन्न धर्मो और दार्शनिको के इस पर व्यक्त विचार भी देखेंगे.

आत्मा को अभौतिक माना जाता है, जिसे छुआ नहीं जा सकता और ना ही देखा जा सकता है, दर्शन मे इसे मानव का सार समझा जो की मानव को व्यक्तित्व और मानवता प्रदान करता है, तो धर्मशास्त्र मे इसे व्यक्तित्व के भाग के रूप मे माना जो की देवत्व का हिस्सा है. इसे कही कही मन (माइंड) और कही कही आत्म (सेल्फ) से जोड़कर भी देखा गया. गीता मे इसे अजर अमर बताया गया है. विज्ञान के पास आत्मा को लेकर कोई जवाब नहीं है क्योंकि ये अभौतिक है, इसे देखा नहीं जा सकता और ना ही छुआ जा सकता है, इसकी जांच नहीं की जा सकती और ना ही इसे सत्यापित किया जा सकता है, इसलिये ना ही इसका अवलोकन हुआ और ना ही प्रयोग. इसलिये विज्ञान के पास इसकी कोई परिभाषा नहीं है। लेकिन प्राचीन काल से ही आत्मा क्या है इसका उत्तर खोजने की कोशिश की गयी. आत्मा को समझने के लिये हमे इसके दर्शन को समझना होगा. विभिन्न सभ्यताओ और धर्मो ने इसे क्या समझा ये भी जानना जरूरी है. प्राचीन काल से ही इसकी उत्पत्ति और अस्तित्व को लेकर कई व्याख्याये पता चलती है.

 

आत्मा का प्राचीन यूनान और ईसाई दर्शन

 

प्राचीन यूनान के एक दार्शनिक स्कूल की शाखा एपीकुरें (epicureans) का मानना था की आत्मा बाकी शरीर की तरह कण (atoms) की बनी है. तो दूसरी शाखा प्लाटोनिस्ट ने इसे अभौतिक और अमूर्त माना, अरस्तु ने माना की इसे शरीर से अलग नहीं किया जा सकता. इसाई धर्मशास्त्र के संत अगस्टीन ने माना की आत्मा शरीर की सवार होती है, उन्होंने इसके भौतिक और अभौतिक अस्तित्व को स्पष्ट किया और आत्मा को सच्चा और इसे शरीर से अलग माना, हालाँकि ये भी बताया की इसका अस्तित्व शरीर के साथ ही है. मध्य काल के पश्चिमी दार्शनिक रेने डेसकार्टेस ने माना की मानव आत्मा और शरीर का संघ है. प्लेटो और सोक्रेटस ने माना की आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सकता. तो, पायथागोरस ने इसकी उत्पत्ति को देवत्व से जोड़ा और इसके अस्तित्व को मृत्यु से पहले और बाद में भी बताया. इस प्रकार आत्मा को लेकर विविध व्याख्या प्राचीन यूनान और पश्चिमी दर्शन से सामने आयी.

muslim philosophy of soul in hindi

मुस्लिम दर्शनशास्त्र मे माना गया की आत्मा मे गैर तर्कसंगत (non rational) और तर्कसंगत (rational) दो भाग होते है। पौधे और जानवरो की आत्मा गैर तर्क संगत भाग मे आती है। तर्कसंगत भाग मे व्यवहारिक और सैद्धांतिक बुद्धि आती है। यहाँ गैर तर्क संगत भाग को शरीर से जोड़ा गया है. लेकिन कुछ का मानना है की तर्कसंगत भाग की प्रकृति शरीर से अलग है.
कुछ दार्शनिको का यह भी मानना है की इसके सभी भागो की प्रकृति भौतिक है. कुछ मुस्लिम दार्शनिक इस बात से सहमत है की ये शरीर के अंदर रहती है जिसके गैर तर्कसंगत भाग का काम शरीर को संभालना है। वही तर्कसंगत भाग मे आने वाली व्यवहारिक बुद्धि का काम दूनिया की घटनाओ और शरीर को संभालना है और सैद्धांतिक बुद्धि का काम ब्रह्मांड के नश्वर पहलू को जानना है। वे ऐसा सोचते है की आत्मा की खुशी शरीर को उसकी मांगो से अलग रखने की काबिलियत पर निर्भर करती है. दार्शनिक अल-फरबी, मानते थे कि तर्कसंगत आत्मा अनंत काल तक जीवित रह भी सकती है और नहीं भी; अन्य दार्शनिक, जैसे इब्न सिना मानते थे कि इसकी कोई शुरुआत नहीं है और कोई अंत नहीं है; दार्शनिक इब्न रुश्द जैसे अन्य लोग मानते थे कि आत्मा अपने सभी हिस्सों के साथ अस्तित्व में आती है और अंत में नष्ट हो जाती है।

hindu philosophy of soul in hindi

हिन्दू दर्शन मे आत्मा को “सार्वभौमिक आत्म और अविनाशी” माना गया, जो की मानव की मृत्यु के बाद नया शरीर ग्रहण कर लेती है और या तो जन्म मृत्यु के बंधन को तोड़कर ‘मोक्ष’ प्राप्त कर लेती है, हिन्दू दर्शन के वेदांत स्कूल ने इसे ‘व्यक्तिगत आत्म’ और व्यक्तिगत सार के रूप मे माना.मुण्डक उपनिषद् मे बताया गया हैं कि प्राणी आत्मा है, आत्मा का आकार परमाणु के बराबर है और इसे पूर्ण बुद्धि से ही देखा या महसूस किया जा सकता है। यह दिल के भीतर स्थित है, और पूरे शरीर में इसका प्रभाव फैलाती है।

गीता मे आत्मा को चेतना माना गया, इसका ना तो जन्म होता है और ना ही मृत्यु, व्यक्ति की मृत्यु के साथ इसकी मृत्यु नहीं होती, इसका जन्म नहीं होता, ये अविनाशी है और सदा अस्तित्व मे रहती है, आत्मा अदृश्य, अकल्पनीय , अटूट है इसे न तो जलाया जा सकता है और न ही सूखाया जा सकता है. गीता मे बताया गया है की सच्चा व्यक्ति शरीर के अंदर निवास करता है, शरीर को वाहन और आत्मा को चालक माना गया है, वही जैन और बुद्ध धर्म मे भी इसे लेकर तरह तरह की व्यख्याये आयी, जैन धर्म ने माना की आत्मा जीवित और अजीवित दोनों चीजो मे निवास करती है, लेकिन बुद्ध धर्म में माना गया की ये केवल जीवित चीजो मे ही निवास करती है,

इस प्रकार soul को लेकर विभिन्न धर्मो और दार्शनिको ने अपने अपने मत रखकर soul के जन्म मृत्यु इसका शरीर के साथ संबंध और इसकी प्रकृति के बारे मे बताया. हालांकि soul की सच्चाई जानना एक ऐसा आध्यात्मिक प्रश्न है जो प्राचीन काल से ही चला आ रहा है. धर्म और दार्शनिको के अलावा इसका उत्तर विज्ञान ने भी जानने की कोशिश की. लेकिन अभी तक विज्ञान इसकी गुत्थी नहीं सुलझा सका है। हालांकि इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं गया है। न्यूरोसाइन्स मे हाल मे हुए शोध और quantum theory of consciousness इसके कुछ हद तक होने की पुष्टि भी करते है। इसको जानने के लिये ये लेख जरूर जरूर पढे

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6 Comments

  1. niraj 11/11/2018
  2. ayush singh 13/11/2018
  3. Manish Dayal 21/11/2018
  4. Lucky 26/11/2018
  5. Vijendra saini 23/04/2020
  6. Vijendra saini 23/04/2020

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