भारत में लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आ चुका है. आने वाले चुनाव के लिए चुनाव आयोग एवं सभी राजनीतिक पार्टिया तैयारी कर चुकी है. कुछ ही दिनों में आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक बयानबाजी भी बढ़ने वाली है लेकिन जनता को अपने राजनीतिक दलों से बहुत अपेक्षाएं हैं. खैर इन सब चीजो के बीच माननीय चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीख घोषित कर दी है और इसी के साथ साथ आचार संहिता भी लागू कर दी है. इस लेख में हम यही जानेंगे कि आचार संहिता क्या है, यह जरूरी क्यों है एवं इसके क्या कार्य है। आशा है इस लेख से आपका राजनीतिक ज्ञान बढेगा.
आचार संहिता क्या होती है – Election Commission of India’s Model Code of Conduct
आचार संहिता, चुनाव के दौरान मुख्य रूप से भाषण, मतदान दिवस, मतदान केंद्र, विभागों, चुनाव घोषणापत्र, जुलूस और सामान्य आचरण के संबंध में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा निर्देशों का एक संग्रह है। । मानदंडों के ये निर्देश राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति से विकसित किए जाते है इन्हे सभी राजनीतिक दलों को मानना पड़ता है. यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनता है और यदि कोई राजनीतिक दल इसे न माने तो चुनाव आयोग उसे दण्ड दे सकता है.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आयोग द्वारा चुनाव की तारीखों की घोषणा के तुरंत बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। चुनाव की तारीख घोषित होने से लेकर वोटो की गिनती तक या कहे चुनाव के नतीजे आने तक आचार संहिता लागू रहती है. चुनाव आयोग, चुनाव में पारदर्शता बरकरार रखने और इसे बढ़ाने में लिए हर बार नए कदम उठाता है
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा के निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करने के लिए प्रतिबद्ध ह। यदि कोई भी नेता या राजनीतिक दल आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो कोई भी आम आदमी चुनाव आयोग में उसकी शिकायत कर सकता है और उस शिकायत पर चुनाव आयोग जरूरी कदम उठा कर कार्यवाही करता है। यह आचार संहिता राजनीतिक पार्टियों के साथ साथ कायकर्ता और सरकारी अधिकारियों पर भी लागू होती है.
आईये जानते है कि आचार संहिता लागू होने पर क्या प्रशासनिक बदलाव होते है.
आचार संहिता के नियम
किसी भी नयी योजना पर रोक
चुनाव की घोषणा होते ही सत्ताधारी पार्टी या कहे सरकार को किसी भी प्रकार की नयी लोकहित नीति बनाने की अनुमति नही होती और न ही नयी नीति से जुड़ा कोई दस्तावेज लोगो के बीच रख सकती है.
सरकारी धन का लाभ उठाने पर रोक
कोई भी पार्टी वह सत्ता में ही क्यों न हो वह चुनावी फायदा उठाने के लिए सरकारी धन का उपयोग नही कर सकती. सन 1975 में चुनाव आयोग ने इंदिरा गाँधी (तत्काल प्रधानमंत्री) को आधार संहिता का दोषी पाया था. जब उन्होंने सरकारी गाडियों और सरकारी अधिकारियो का इस्तेमाल चुनाव में किया था. इसके लिए इंदिरा गाँधी के संसद भवन में प्रवेश पर भी पाबन्दी लगा दी थी.
सरकारी अफसरों के तबादलों पर रोक
चुनाव की घोषणा होते ही सरकार अफसरों के तबादलों के काम में लग जाती है ताकि अपने पसंदीदा अफसर को लाभ पहुंचा सके. आचार संहिता लागू होते ही ऐसा नही किया जा सकता. यदि किसी अफसर का तबादला बहुत जरूरी है तो ऐसा करने से पहले चुनाव आयोग की स्वीकृत लेना जरूरी है.
चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थलों पर रोक
चुनाव प्रचार के लिए यदि कोई भी पार्टी धार्मिक स्थलों (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि ) का उपयोग करती है तो इसे भी आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है. चुनाव प्रचार सार्वजानिक स्थलों पर किया जाना चाहिए जिसका अधिकार सभी पार्टियों पर बराबर होता है.
शराब-पैसे के वितरण पर रोक
चुनाव वाले दिन या उसके 24 घंटे पहले यदि कोई शराब या पैसे बांटता है तो चुनाव आयोग उस पर जरूरी कारवाई कर सकता है।
चुनाव से 48 घंटे पहले सोशल मीडिया प्रचार पर रोक
2019 में चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार को लेकर सख्त है जिसके अंतर्गत सभी राजनीतिक पार्टियों को अपने सारे सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और चुनाव के 48 घंटे पहले सोशल मीडिया पर प्रचार बंद करना होगा.
यह कुछ जरूरी नियम है जो आचार संहिता के अंदर आते है। यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो उस पर जरूरी कारवाई की जाती है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने आचार संहिता पर एक मोबाइल एप्लीकेशन भी बनाई है जिसका नाम है CVIGIL एप्प. जिसके द्वारा यदि कोई आम नागरिक अपने आसपास आचार संहिता का उल्लंघन होते देखता है तो इस पर शिकायत कर सकता है और सबुत के तौर पर फोटो भी डाल सकता है जिस पर 100 मिनट के अंदर कारवाई की जाएगी.
लेकिन आचार संहिता लागू होने का यह मतलब नही कि सारे सरकारी कार्य रुक जानेगे. सरकारी सुविधाओ के कार्य जैसे – पेंशन, आधार कार्ड बनवाना, बिजली-पानी और सफाई आदि किसी काम में कोई रूकावट नही आयेंगी.
तो यह थी आचार संहिता से सम्बंधित जानकारी। आशा है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी और आप इसका लाभ जरूर उठा पाएंगे। इसके अलावा हमारी अपील है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट करने जरूर जाए.
लेखक के बारे मे
शुभम प्रजापति एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक है जो अभी स्कूल काउंसलर के तौर पर पर काम कर रहे है। ये सामाजिक मनोविज्ञान, असामान्य मनोविज्ञान और राजनीतिक मनोविज्ञान जैसे विषयो पर लिखना पसंद करते है।
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