अवसाद (depression) मानसिक रोगों का एक प्रमुख एवं सामान्य जड़ है। अवसाद या डिप्रेशन से मतलब मनोदशा (mood) में उत्पन्न उदासी से होता है या इसका मतलब एक नैदानिक संलक्षण (clinical syndrome) से होता है जिसमें पाँच तरह के लक्षण अर्थात् सांवेगिक (emotional), अभिप्रेरणात्मक (motivational), व्यवहारात्मक (behavioural), संज्ञानात्मक (cognitive) तथा दैहिक (somatic) लक्षणों का एक मिश्रण होता है। इसे नैदानिक विषाद (clinical depression) भी कहा जा सकता है। यहाँ “डिप्रेशन या अवसाद” शब्द का उपयोग इसी नैदानिक अवसाद (clinical depression) के अर्थ में किया जाता है न कि मनोदशा (mood) में आई साधारण उदासी के अर्थ में।
clinical depression में depressed mood के अलावा अन्य कई लक्षण जैसे, थकान, शक्तिहीनता, नींद में कठिनाई, भूख में कमी, ध्यान में कमी आदि मुख्य रूप से पाई जाती है। विषादी विकृति (depressive disorder) के प्रकारों को जानने से पहले यह आवश्यक है कि clinical depression के पाँच सामान्य लक्षणों के बारे मे जान लिया जाए।
Symptoms of depression in hindi – अवसाद के लक्षण
वे पाँच सामान्य लक्षण (symptoms) इस प्रकार हैं :-
(1) सांवेगिक लक्षण (Emotional symptoms) – अवसाद के कुछ सरल और स्पष्ट Emotional symptoms देखे जा सकते हैं। जैसे उदासी, निराशा (hopelessness), दुखी (unhappiness), दोषभाव, बेकारी की भावनाएं आदि मुख्य रूप से होती है। इसमें उदासी (sadness) सबसे सामान्य Emotional symptoms है। इसमें से कुछ लोग तो इतना अधिक विषादी हो जाते हैं कि बिना रोये हुए किसी से बात ही नहीं कर पाते हैं।
डिप्रेशन की अवस्था में उदासी के भाव के साथ-ही-साथ चिंता (anxiety) का भाव भी अधिक होता है। ऐसे लोगों को अपने शौक (hobby), मनोरंजन तथा परिवार सभी बेकार लगने लगते हैं और इनसे उन्हें किसी प्रकार की कोई रुचि नहीं रह जाती। यहाँ तक कि प्रमुख जैविक क्रियाएँ जैसे, भूख एवं संभोग (sex) भी इनके लिए कोई मायने नही है। एक शोद्ध के आधार पर बताया है कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्तिओ में से 92% लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी जिंदगी में कोई मुख्य रुचि नहीं रह जाती है तथा 64% ऐसे होते हैं जिनमें दूसरे लोगों के प्रति शून्यता का भाव आ जाता है या फिर अपने आसपास के लोगो के लिए कोई हमदर्दी नही रह जाती।
(2) संज्ञानात्मक लक्षण (Cognitive symptoms) – एक डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति अपने बारे में हमेशा नकारात्मक ढंग से ही सोचता है। उसमे इस तरह की नकारात्मकता अपने तथा अपने भविष्य के बारे में होती है। नकारात्मक ढंग से अपने बारेमें चिंतन करते हुए ऐसे व्यक्ति यह सोचता है कि वह बेकार है और किसी काम का नही है तथा उसमें आत्म-सम्मान (self-esteem) नहीं है। वह अपने आप को असफल व्यक्ति की तरह देखता है और अपनी इस असफलता का मुख्य कारण अपने आप को ही वह समझता है। वह अपने आप को हर एक तरह से अयोग्य एवं दूसरों से कम मानता है। ऐसे लोगों में दोषभाव (guilt feeling) भी बहुत ज्यादा होता है। यह जीवन मे जब जब असफल होते है, उसको पूरी तरह से खुद को जिम्मेदार मानते है।
ऐसे लोग मे अपने बारे में नकारात्मक विचार तो होते ही हैं, साथ-ही-साथ अपने भविष्य को निराशा एवं उदासी से भरा समझते हैं। उनका यह विचार होता है कि अब सब कुछ खराब हो गया है और अब उसे किसी अच्छे चीज की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए और इस बुरे भविष्य के लिए वह तरह-तरह के तर्क भी लोगों को देने लगते है। ऐसे लोग प्राय: यह भी कहते सुनेजाते हैं कि उनकी बौद्धिक क्षमता (intellectual ability) दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है। उनमें संभ्राति (confusion) बढ़ता जा रहा है, वे घटनाओं को ठीक तरह से याद नहीं रख पाते हैं और वे छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं।
(3) अभिप्रेरणात्मक लक्षण (Motivational symptoms): डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति अपने दिनचर्या के कामो मे अपनी रुचि खो देते हैं। करीब सभी ऐसे व्यक्तियों में प्रणोद (drive), पहल (initiative) तथा स्वेच्छा (spontaneity)की कमी पायी जाती है। ऐसे लोगों को काम पर जाने के लिए, दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए, भोजन करने के लिए तथा यौन व्यवहार करने के लिए काफी दवाब डालना पड़ता है। मनोवैज्ञानिक एरोन बेक ने ऐसी स्थिति को ‘ इच्छाओं का पक्षाघात’ (paralysis of will) कहा है।
ऐसे लोग किसी समस्या पर अंतिम निर्णय लेने में काफी मुश्किलों का सामना करते हैं। सही में इनके लिए निर्णय लेना डर से भरा हुआ काम है जिसे वे आम तौर पर नहीं करना चाहते हैं। ऐसे लोग अपनी जिंदगी की कार्यो एवं दवाबों से बचने के लिए आत्महत्या(suicide) करने में भी हिचकिचाते नहीं है। एक अध्ययन के अनुसार आत्महत्या करने वालों में से आधे से ज्यादा लोग ऐसे होते हैं जो डिप्रेशन का शिकार होते हैं।
(4) व्यवहारपरक लक्षण (Behavioural symptoms): डिप्रेसिव व्यक्तियों की क्रियाएँ सामान्यतः वे कम करते कार्य हैं तथा उसकी उत्पादकता मे कमी आ जाती है और वो अकेले रह कट समय व्यतीत करते है और लंबे समय तक लेटे रहते है। एक अध्यन मे यह पता चला है कि विषादी लोग (depressed people) बहुत धीरे-धीरे चलते है तथा उनका व्यवहार से ऐसा लगता है कि उनमें न तो चलने की इच्छा है और न शक्ति। यहाँ तक कि धीमा, एकस्वरीय तथा आँख झुकाकर बात करते है। एक अध्ययन के अनुसार डिप्रेसिव लोग सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा साक्षात्कारकर्ता के साथ सीधे आँख मिला कर बातचीत नहीं करते हैं तथा प्राय:वे मुँह फेरकर किसी प्रश्न का जवाब देते हैं।
(5) दैहिक लक्षण (Somatic symptoms): डिप्रेसिव व्यक्तियों में प्रायः शारीरिक लक्षण जैसे सिरदर्द, अपच, कब्ज, छाती में दुखद संवेदन तथा पूरे शरीर में दर्द आदि भी होते देखे जा सकते हैं। बहुत सारे लोग ऐसी डिप्रेशन की अवस्थाओं को कभी-कभी मेडिकल समस्या समझने की भूल कर देते है। एक शोद्ध मे बताया गया है कि डिप्रेशन का शिकार व्यक्तियों में अन्य दैहिक लक्षणों की तुलना में भूख एवं नींद में कमी प्रमुखता से देखी जा सकती है। इनका थकान का स्वरूप कुछ ऐसा होता है कि लम्बे समय तक आराम एवं नींद के बाद भी वह खत्म होने का नाम नही लेता। रिसर्च के अनुसार करीब 9 % डिप्रेसिव व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें नींद बहुत ज्यादा आती है।
अब ये बात साफ है कि अवसाद (depression) में कई तरह के लक्षण (symptoms) होते हैं। एक विशेष प्रश्न जिसमें मनोवैज्ञानिकों और मनश्चिकित्सकों एवं मनोरोग विज्ञानियों की अभिरुचि ज्यादा देखी गई है, वह है — सामान्य लोगों कौन लोग डिप्रेशन के प्रभाव से अधिक प्रभावित होते हैं? वैसे तो इसका उत्तर नकारात्मक है क्योंकि विषाद एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिससे सभी लोग चाहे वे अमीर हों या गरीब, बूढ़े हों या जवान, स्त्री हो या पुरुष सभी प्रभावित होते हैं।
फिर भी कुछ अध्ययनों से ऐसे संकेत मिले हैं जिनसे यह पता चला है कि सामान्य जनसंख्या के कुछ लोग ऐसे जरूर हैं जिन्हे डिप्रेशन होने का खतरा ज्यादा हैं। अध्ययनों से यह पता चला है कि महिलाओं में सभी तरह के विषादी अवस्थाओं के होने की संभावना पुरुषों की अपेक्षा दुगुनी अधिक होती है। उसी तरह से आयु (age) पर भी अवसाद के उत्पन्न होने की संभावना निर्भर करता है। महिलाओं में 20 से 29वर्ष तथा पुरुषों में 40 से 49 वर्ष की आयु में विषाद का प्रभाव सर्वाधिक होता है।
एक ताजा अध्ययन के अनुसार जिन व्यक्तियों को समाज का समर्थन (social support) कम प्राप्त होता है, उनमें डिप्रेशन पैदा होने का खतरा अधिक होता है। ऐसे लोग थोड़ा-सा ही तनाव मे आने पर ही डिप्रेसिव व्यवहार करना शुरू कर देते हैं। उसी तरह से व्यक्तियों माता-पिता, भाई-बहन आदि में विषादी प्रकृति होने से उनमें ऐसी प्रवृत्ति विकसित होने की संभावना काफी अधिक हो जाती है। इण्डियन एकेडमी ऑफ क्लिनिकल साइकेट्री (Indian Academy of Clinical Psychiatry or IACP) के एक नवीनतम अनुसंधान जिसका प्रकाशन 2000 में किया गया, के अनुसार भारत में मेडिकल सहायता के लिए आने वाले रोगियों में से करीब 6 से 35 % रोगी विषाद (depression) के होते हैं।
तो दोस्तो आप अब अच्छे से समझ ही गए होंगे की क्लिनिकल डिप्रेशन किसे कहा जाता है, कैसे यह सामान्य उदासी से अलग है और डिप्रेशन के क्या लक्षण है। अगर आपके कोई सवाल है तो आप कमेंट के जरिये पूछ सकते है। हमारे आने वाले सभी आर्टिक्ल की latest information पाने के लिए हमे फ्री subscribe करे और हमारा Facebook Page like करें।
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