फेसबुक, ट्विटर, फ़ोन कॉल्स लोग अलग अलग माध्यमो से दिपावली की शुभकामनाओ के आदान-प्रदान में लगे है। लेकिन सभी शुभकामनाओ का इंसान की ज़िन्दगी में ऊपरी ख़ुशी के अलावा कोई गहरी बात नही दिखाई देती। फिर इन सब शुभकामनाओ का क्या मतलब?
ये परम्परा कहा से शुरू हुई? क्या त्योहारो पर शुभकामनाये देना मात्र एक औपचारिकता भर है? पहले इन सब शुभकामनाओ का तर्क पवित्र था लेकिन आज के दौर में बाज़ारवाद इन पर हावी हो गया है और आज ये सिर्फ एक ढोंग बन कर रह गया है जिस पर मनोवैज्ञानिक दृष्टी से गहन अध्यन की जरूरत है।
मनोविज्ञानिको का कहना है की शुभकामनाये हमारे अंदर की छवि को सुधारती है जिससे हमारा आत्म विश्वास बढ़ता है. हमारे कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है. इन सबसे हीनभावना कम होती है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शुभकामनाये दिल से देने में ही तार्किकता है। यह केवल जिम्मेदारी निभाने, ढोंग करने और बाज़ारवाद का त्यौहार नही है। ये त्यौहार आपसी भाई चारे का है जो दिल को दिलो से जोड़ता है।
यह त्योहार एक सक्रात्मक ऊर्जा (ENERGY) को उत्पन करता है। सच्ची शुभकामनाये या दिल से दी गई बधाई का अपना एक महत्व है। शुभकामनाओ का जिम्मेदारी के तौर पर लेनदेन करना बेकार है। सच्चे दिल से दी गई शुभकामनाओ से इंसान के भाव अच्छे होते है। शुभकामनाओ से ही अच्छे विचार आते है। मनोविज्ञानं कहता है की विचारो की एक छोटी सी इकाई है सोच और यही सोच विचार हमारे छोटे से शरीर को बड़ा बनाते है। शुभकामनाओ में एक सकारत्मक ऊर्जा होती है और ये ऊर्जा अच्छी भावनाओ को मजबूती देती है जिससे हमारे प्यार में, हमारी दिव्यता में वृद्धि होती है। हमारा वातावरण भी शुभ होता है। अच्छे भाव जीवन में अच्छे कार्यो के कारण ही होते है। इस तरह शुभकामनाओ का महत्त्व हमारे जीवन में साफ है अतः शुभकामनाये दिल से दे, कोई औपचारिकता न पूरी करे..
आप सभी को हमारी ओर से शुभ दिपावली।
happy Diwali to you.good article
very very useful article. we have to think about it.thanks
yes. you are right