हिस्टीरिया : महिला हिस्टीरिया से मानसिक विकार तक का सफर

हिस्टीरिया एक मानसिक विकार है जो अत्यधिक चिंता से पैदा होता है। इसमे रोगी का अपने कार्यों और भावनाओं पर नियंत्रण नही रहता. हिस्टीरिया एक प्राचीन विकार है, प्राचीन यूनानियों ने विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओ के लिए शब्द hysteria का प्रयोग किया। हिस्टीरिया ग्रीक शब्द hystera से निकला है, जिसका अर्थ है गर्भाशय (uterus).

 

महिला हिस्टीरिया (female hysteria)

शुरुआत में इसके इलाज के लिये अजीब उपायो का इस्तेमाल किया जाता था और ऐसा माना जाता था की ये केवल महिलाओ तक सिमित है. पहले इसका इलाज जड़ी बूटियों, यौन और यौन संयम द्वारा, यातनाये देकर किया जाता था. कभी कभी तो इसे जादू टोने से संबंधित मानकर आग से उन्हें शुद्ध किया जाता था. आधुनिक काल तक आते आते इसके उपचार करने के तरीके में बहुत बदलाव आ गया और यह पता चल गया की यह केवल महिलाओ तक सिमित नहीं है. आगे चलकर इसे बीमारी मान लिया गया और नयी चिकित्सा के साथ इसका इलाज किया गया.

 

ऐतिहासिक रूप से, hysteria को महिलाओ से संबंधित बताया गया था और इसके साथ कई ओर लक्षणों को शामिल किया गया था, इन लक्षणो मे शामिल थे: चिंता, श्वास की कमी, बेहोशी, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, घबराहट, साथ ही साथ यौन व्यवहार।  ये लक्षण अन्य अधिक परिभाषित रोगों के लक्षणों से मिलते थे और एक वास्तविक बीमारी के रूप में हिस्टीरिया की वैधता के खिलाफ बहस के लिए एक मामला बनाते थे।

 

हिप्पोक्रेट्स (5वी सदी ईसापूर्व) के अनुसार  गर्भाशय एक स्वतंत्र, घूमता हुआ अंग था और इसके महिला के शरीर मे घुमने से हिस्टीरिया होता है । इसके बाद यह धारणा कि हिस्टीरिया केवल महिलाओं तक सीमित है चलती रही, जब तक की चारकोट (charcot) ने इस धारणा मे बदलाव नहीं लाया.

 

ईसाई धर्म की पहली दस शताब्दियों के दौरान, गैलेनिक अवधारणाओं के आधिकारिक प्रभाव के तहत चिकित्सकीय विचार रूक गये, हिस्टीरिया के अधिकांश मामलों को विभिन्न शारीरिक बीमारियों के लिए गलत माना गया। मध्य युग के दौरान, बीमारियों के प्रति सोच मे बदलाव आया, हिस्टीरिया के कई मामलों की जादू टोने की अभिव्यक्तियों के रूप में व्याख्या की गई थी।

 

पुनर्जागरण के दौरान अनुभववाद और विज्ञान के फलने फूलने के साथ, hysteria को फिर से एक बीमारी के रूप में पुनः खोजा गया। यह दिलचस्प है कि अठारहवीं शताब्दी में इसके मुख्य कारणों के लिये भावनाओं, जुनूनों, और मानवीय सुझावों को जिम्मेदार ठहराया गया था, और उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में चार्कोट, जेनेट और फ्रायड ने न्यूरोलॉजिकल बीमारी और हिस्टीरिया के बीच अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि हिस्टीरिया एक ऐसी शारीरिक बीमारी जैसी स्थिति है जो स्वस्थ शरीर वाले व्यक्तियों में होती है।

 

उन्होंने बताया की हिस्टीरिया शारीरिक बीमारी की तरह ही है जो की उन लोगो में होता है जिनका शरीर स्वस्थ होता है, हिस्टीरिया के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर यह छोटा सा कदम था, जिसने इसे बिमारी से संबंध बताया हालाँकि इस विचार मे शारीरक कारण शामिल नहीं था. हिस्टीरिया के कम्युनिकेशनल दृष्टिकोण ने इसे संचार के रूप से संबंधित बताया और इसे बीमारी की भाषा माना.

 

हिस्टीरिया एक मानसिक विकार hysteria a mental disorder

 

हिस्टीरिया का उपचार अक्सर महिलाओं के यौन अंग या यौन आदतों पर केंद्रित होते था.  हिस्टीरिया को मानसिक बीमारी के रूप मे इलाज करने की शुरुआत फ्रांसीसी चिकित्सक जीन मार्टिन चार्कोट ने की, उन्होंने इस बीमारी के इलाज के लिये सम्मोहन (hypnosis) और दूसरे तरीको का इस्तेमाल किया. उन्होंने यह बताया की हिस्टीरिया जैसी बीमारी का संबंध रोगी के मन से है, रोगी के लिंग (gender) से इसका कोई संबंध नहीं है.

 

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड ने हिस्टीरिया के संबंध मे अपने सिधांत विकसित किये, हालाँकि सिग्मंड फ्रायड ने इसे अभी भी यौन रोग के रूप मे माना. हिस्टीरिया से संबंधित अपने मरीजो का इलाज करने से उन्हें अपना सिधांत विकसित करने में मदद मिली. उन्होंने बताया की हिस्टीरिया के लक्षणों का कारण बचपन का आघात (childhood trauma) है. विशेष रूप से, फ्रायड ने बचपन के यौन शोषण या इसी तरह के आघात (trauma) को इसका दोषी ठहराया।

 

आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों ने इस क्षेत्र में फ्रायड के कार्यो पर विचार किया है, क्योंकि वह अपने व्यापक निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए लगभग पर्याप्त रोगियों की जांच नहीं करते थे। कुछ मामलों में, उनके रोगियों के लक्षण मिर्गी या अन्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से जुड़े हुए थे क्योंकि हिस्टीरिया अभी भी सही तरीके से परिभाषित नहीं था.

 

हिस्टीरिया की वैज्ञानिक समझ प्रारंभिक 19वीं शताब्दी में शुरू हुई। 19वी शताब्दी के दौरान हिस्टीरिया का वर्णन एक मरीज के विभिन्न प्रकार के शारीरक लक्षणों के रूप में किया गया. 20 वी शताब्दी के कई अध्यन हिस्टीरिया के लक्षणों की एक विशेष प्रस्तुती पर आधारित होते थे. मनोचिकित्सको ने यह ध्यान दिया की शरीर का कोई भी कार्य हिस्टीरिया से प्रभावित हो सकता है. जॉर्ज बियर्ड (george beard) नामक चिकित्सक ने हिस्टीरिया के संभावित लक्षणों के उपर 75 पृष्ठों की सूची तैयार की और अभी भी अपनी सूची को अपूर्ण बताया. इस दौरान हिस्टीरिया को शारीरिक रोग कम और मानसिक रोग ज्यादा बताया गया.

 

आधुनिक काल तक आते आते ना सिर्फ हिस्टीरिया विकार से संबंधित धारणाओं में  बदलाव आ गया बल्कि इसके इलाज करने के तरीके भी बदल गये. अब यह माना जाता है की ये एक मानसिक बीमारी है, आधुनिक चिकित्सको ने इसे converesion disorder भी कहा है जिसके बारे में हम अगले पोस्ट मे चर्चा करेंगे.

 

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  1. shiva chauhan 08/08/2018

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