1965 में अमेरिका के एक मनोविज्ञानिक मार्टिन सेलिगमैन ने कुछ कुत्तो पर एक शोध किया. इस शोध में एक घंटी बजाई जाती है और उसके बाद कुत्तो को हल्का बिजली का झटका दिया जाता है. ये प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है. कुछ दिनों बाद सेलिगमैन ने देखा की कुते इतने सदमे में आ गये की वे घंटी के बजते ही करंट लगने जैसी प्रतिक्रिया देने लगते. लेकिन फिर कुछ समय बाद इस शोध में कुछ अप्रत्याशित हुआ. सेलिगमैन ने उन सभी कुत्तो को एक बड़े बॉक्स में रखा जो की एक छोटी बाड़ के जरिये दो हिस्सों में विभाजित था. बॉक्स के हिस्से में कुत्तो को रखा गया और उन्हें दुबारा हल्का बिजली का झटका दिया गया. सेलिगमैन को उम्मीद थी की सभी कुत्ते झटका पाते की बॉक्स के दुसरे हिस्से में कूदने की कोशिश करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुत्तो ने झटके से बचने के लिए ऐसा कुछ नहीं किया.
सेलिगमैन ने यह एक्सपेरिमेंट कई दुसरे कुत्तो पर भी किया जिसके नतीजे एक सामान आये. इसके बाद उन्होंने उन कुत्तो को उस बॉक्स में रखा जिन्हें पहले कभी बिजली का झटका नहीं दिया गया. जब बॉक्स में इन कुत्तो को शॉक दिया गया तो इन सभी ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और सभी के सभी कूदकर बॉक्स के दुसरे हिस्से में चले गये.
सेलिगमैन के अनुसार पहले कुत्तो ने बचकर भागने की इसलिए कोशिश नहीं की क्योकि अपने अतीत में उन्होंने अपने आपको करंट से बचने में असहाय पाया. उन्हें ये लगा की वे चाहकर भी इससे नहीं बच सकते. इस स्थिति को सेलिगमैन ने Learned helplessness का नाम दिया. Learned helplessness वह स्थिति है जब एक इंसान या जानवर बार बार नकरात्मक, दर्दनाक या अन्य समस्याओं का सामना कर उससे बचने में अपने को असमर्थ पाता है.
इस तरह के अनुभव के बाद, इंसान अक्सर नई परिस्थितियों से सीखने या दुबारा अपने आप को उस कठिनाई से बचाने में असमर्थ महसूस करता है चाहे वहां से से बचने या उस परिस्थिति से सामना करने कई कई रास्ते मौजूद हो. क्योकि उसे लगता है की जब वह कई बार पहले इससे पार नहीं नहीं पा पाया तो अब कैसे निपट सकता है. इसलिए उसकी कोशिशो में भी कमी आ जाती है और जब उस चीज को करने का सही मोका या समय आता है तो वह उसे समझ नहीं पाता. इसी को Learned helplessness कहा जाता है यानि इंसान सीख लेता है की वह लाचार और बेबस है.
हमारी रोजाना की जिंदगी में ऐसे कई उदहारण देखने को मिलते है. अक्सर हम एक ही काम में बार बार फेल होते है चाहे वह कोई competitive exam हो या फिर कोई बिज़नस या कोई रिलेशनशिप. और फिर एक ऐसी दशा में पहुच जाते जहाँ हमें लगता है की जिंदगी में अब सब कुछ खत्म हो गया है. अब हम कुछ नहीं कर सकते. और ये स्थिति हमें डिप्रेशन और तनाव की ओर ले जाती है. यहाँ तक की कई लोग गलत कदम भी उठा लेते है. लेकिन क्या ऐसा करने से समस्या का हल निकलता है?? बिलकुल भी नहीं बल्कि हम अपने साथ साथ हमें प्यार करने वाले लोगो को भी दुःख देते है.
इस समस्या का जवाब एक बार किसी ने विवेकानंद से पूछा की सब कुछ खो देने से ज्यादा क्या बुरा हो सकता है जिसका जवाब विवेकानंद ने दिया
उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे सब कुछ पाया जा सकता है
जब तक हम में उम्मीद जिंदा है तब तक हमें कोई हरा नहीं सकता. हाँ हम निराश और परेशान जरुर हो सकते है लेकिन अवसर मिलते ही उस खराब परिस्थिति से बाहर निकाल सकते है. इसके लिए परिवार वालो और दोस्तों की भी जिम्मेदारी बनती है की वह उस इंसान को हर कदम पर सपोर्ट करें. Learned helplessness और कुछ भी नहीं बस हर एक जिव की प्रवृति है जो उसे अंधरे से बाहर नहीं निकलने देती. इस अधेरे को दूर करने का तरीका है रौशनी जो आपके अन्दर का सयंम, विश्वास और कुछ अच्छा होने की उम्मीद है.
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