INDUS WATER TREATY IN HINDI – सिंधु जल समझौता
आजकल हर न्यूज़ चैनल पर एक बात की काफी चर्चा है की भारत को सिंधु नदी का पानी रोक लेना चाहिए ताकि पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके। ऐसे मे काफी लोगो के मन मे यह सवाल आता होगा की आखिर सिंधु नदी का यह मसला क्या है, क्यो भारत अपने ही देश से बहने वाले सिंधु नदी का पानी इस्तेमाल नहीं सकता, सिंधु जल समझोता आखिर है क्या, भारत को क्यो ये जल समझौता करना पड़ा, इस संधि का इतिहास क्या था, क्या ये संधि तोड़ी जा सकती है, पाकिस्तान के लिये इस संधि के क्या फायदे है और अगर भारत इस समझौते को तोड़ दे तो पाकिस्तान पर इसके क्या प्रभाव पड़ सकते है, ये कुछ ऐसे सवाल है जो आजकल सुर्खियो मे छाये हुए है और मांग ये उठ रही है की भारत को ये समझौता तोड़ देना चाहिये। इससे पहले की हम इन प्र्श्नो का उत्तर ढूँढे, हमे पहले सिंधु नदी की भौगौलीक स्थिति को जान लेना होगा।
जानिये सिंधु नदी के बारे मे – indus river system hindi
ये नदी तिब्बत के मानसरोवर के निकट स्थित सिन-का-बाब नामक जलधारा से निकलती है और कराची के निकट अरब सागर मे गिरती है। ये नदी लगभग 2880 किलोमीटर लंबी है, इस नदी का ज्यादातर क्षेत्र पाकिस्तान मे है जो की 47 प्रतिशत है, भारत मे 39 प्रतिशत, चीन मे 8 प्रतिशत और अफगानीस्तान मे 6 प्रतिशत है। झेलम, सतलुज, चिनाब, रावी, व्यास ये सभी पंजाब मे बहने वाली पाँच नदिया सिंधु की प्रमुख सहायक नदिया है।
सिंधु जल समझौता क्या है – what is Indus water treaty in hindi
1960 मे कराची मे पानी के बँटवारे को लेकर भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयुब खान ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इसे सिंधु जल संधि या समझौता कहा गया। ये एक अंतराष्ट्रीय समझौता भी है क्योकि भारत और पाकिस्तान के अलावा विश्व बैंक ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। ये संधि विश्व कि सबसे उदार और सफल जल वितरण कि संधि है। 12 जनवरी 1961 को इस संधि की शर्ते लागू कर दी गयी थी। इस समझौते मे 6 नदियो का वितरण तय किया गया। इस संधि मे तीन नदिया सतलुज, व्यास और रावी के पानी के इस्तेमाल का पूरा हक भारत को मिला था, ये पूर्वी नदिया थी। जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान के हिस्से मे आई। ये पश्चिमी नदिया थी। पाकिस्तान के हिस्से मे आने वाली नदिया भारत से होकर बहती थी, इसलिये इन तीनों नदियो के बहाव को बिना किसी बाधा के पाकिस्तान मे देना तय हुआ था। लेकिन इन नदियो का कुछ हक भारत को भी मिला।
इन नदियो के इस्तेमाल का 80 प्रतिशत हक पाकिस्तान को है जबकि 20 प्रतिशत का हक भारत का है। भारत बिजली बनाने और सिंचाई के लिए सीमित रूप से इन नदियो के पानी का इस्तेमाल कर सकता है। अगर इस संधि मे कोई विवाद आ जाता है तो ऐसे विवादो को निपटाने के लिये एक आयोग भी बनाया गया जिसका नाम था स्थायी सिंधु आयोग, जिसमे दोनों देश एक एक आयुक्त नियुक्त करेंगे।
सिंधु जल समझौते का इतिहास history of Indus water treaty in hindi
1948 मे भारत ने पाकिस्तान जाने वाली अधिकांश नहरों में आपूर्ति में कटौती की, लेकिन बाद मे भारत ने पाकिस्तान को नदिया इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी। 1951 मे पाकिस्तान ने अपने कई क्षेत्रो मे पानी ना देने का आरोप भारत पर लगाया। 1954 मे विश्व बैंक इस मामले मे मध्यस्थता की भूमिका निभाने आया और उसने यह सुझाव दिया की पूर्वी नदियो का इस्तेमाल भारत करेगा और पश्चिमी नदियो का इस्तेमाल पाकिस्तान करेगा। कई साल बैठको का दौर चला और अंत मे 1960 को जाकर इस समझौते पर दोनों देशो ने हस्ताक्षर किये।
पाकिस्तान के लिये सिंधु जल संधि का फायदा – benefits of Indus water treaty for Pakistan in hindi
पाकिस्तान के लिये इस समझौते का फायदा ये है की ये संधि उनकी पानी की आवश्यकताओ के लिये बहुत जरूरी है, जो ना केवल उनकी प्यास बुझा सकती है बल्कि उनकी कृषि, बिजली और उद्योग धंधो के विकास के लिये भी बहुत जरूरी है। पाकिस्तान की 90 प्रतिशत खेती इन्ही नदियो पर टिकी है और खेती का विकास अर्थव्यवस्था के विकास के लिये बहुत जरूरी है।
क्या ये संधि तोड़ी जा सकती है – can india scrap the Indus water treaty in hindi
सिंधु जल समझौता होने से लेकर अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हूए और कई विवाद भी हूए लेकिन भारत ने इस संधि कि शर्ते निभाई और पाकिस्तान को उसके हिस्से का पानी मिलता रहा। ऐसे कई मौके आए जब ये मांग उठी कि इस जल संधि को तोड़ देना चाहिये, लेकिन इस जल संधि को तोड़ना भारत के लिये उतना आसान नहीं होगा, जिसके कारण है ये एक अंतराष्ट्रीय संधि है, भौगौलीक कारणो कि वजह से भारत इन नदियो के पानी को नहीं मोड सकता।
नहरों की कमी, पानी को एकत्रित करने के स्त्रोत की कमी, अगर इन नदियो के पानी को पाकिस्तान मे जाने से रोकना है तो भारत को इसके लिये बांध बनाने होंगे। बांध बनाने मे लगने वाला समय, इन बांधो को आतंकवादियो से होने वाला खतरा, सिंधु और सतलुज का उद्गम स्त्रोत भारत मे ना होकर, चीन के तिब्बत मे होना, पाकिस्तान से मित्रता के कारण चीन भी अपना पानी भारत को देने से रोक सकता है।
सिंधु जल संधि तोड़ते वक्त इन सब कारणो को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। फिर भारत के पास एक ओर रास्ता ये होगा की वो पश्चिमी नदियो पर अपने 20 फीसदी हिस्से को पूरा इस्तेमाल कर ले तो इससे भी पाकिस्तान पर काफी असर पड़ सकता है, इस संधि के तहत भारत 36 लाख एकड़ फीट पानी को स्टोर कर सकता है इसके अलावा सिंचाई के लिये भारत साढ़े चार लाख पानी अतिरिक्त ले सकता है। इससे पाकिस्तान के बिजली उत्पादन और जमीन की सिंचाई पर असर पड़ सकता है, जो अंतत: उद्योग धंधो और कृषि पर प्रभाव डालेगा।
यह तो अब आने वाला समय ही बताएगा की इस मुद्दे का क्या हल निकलता है।
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