Mental Healthcare Act 2017 – मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017
इस बात मे कोई शक नहीं है की मानसिक स्वास्थ्य सामान्य स्वास्थ्य से कुछ हद तक अलग होता है क्योंकि कुछ परिस्थितियों में मानसिक रूप से बीमार लोग स्वयं निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते। हमारे देश मे जो लोग मानसिक समस्याओं से पीड़ित है उनमे से बहुत कम ही उचित चिकित्सा प्राप्त करते हैं क्योंकि वे और उनके परिवार शर्म की भावना के कारण अपनी स्थिति को छिपाने की कोशिश करते हैं। दुनिया की कुल आबादी के 4.4% लोग यानि लगभग 300 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी विकार से पीड़ित हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग हर 40 में से 1 व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हैं।
यही कारण है की अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी मानसिक स्वास्थ्य को महत्त्व दिया जा रहा है । इसी कड़ी मे भारत मे नए Mental Healthcare Act 2017 ने मौजूदा मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 1987 को रद्द कर दिया है, जिसकी मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता नहीं देने के लिए काफी आलोचना की गई थी।
Mental Healthcare Act 2017 मे Indian Penal Code के धारा 309 को खत्म कर दिया है जिसके तहत आत्महत्या को अपराध के रूप मे देखा जाता था। इस डर के कारण परिवार के लोग रोगी का इलाज करने से कतराते थे ताकि किसी को पता न चले। इस अधिनियम का एक और मुख्य आकर्षण मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना है, और उसे सुविधा प्रदान करना है।
Mental Healthcare Act 2017 के तहत अन्य प्रावधान है
- प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने का अधिकार होगा। ऐसी सेवाएं अच्छी गुणवत्ता, सुविधाजनक, सस्ती और सुलभ होनी चाहिए। यह अधिनियम ऐसे लोगों को अमानवीय व्यवहार से बचाने के लिए, मुफ्त कानूनी सेवाओं और उनके मेडिकल रिकॉर्ड तक पहुंच प्राप्त करने का प्रावधान करता है, और प्रावधानों में कमियों की स्थिति में शिकायत करने का अधिकार देता है।
- बीमाकर्ता अब उसी आधार पर मानसिक बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा बीमा के प्रावधान बनाने के लिए बाध्य हैं, जो शारीरिक बीमारियों के उपचार के लिए उपलब्ध है।
- अधिनियम मे Electroconvulsive therapy (करंट देने) के उपयोग को केवल आपातकाल के मामलों में इस्तेमाल की इजाजत दी है। इसके अलावा, Electroconvulsive therapy को नाबालिगों के लिए चिकित्सा के रूप में उपयोग करने के लिए रोक लगाई है।
- रोगी, उसके परिवार और बोर्ड की सहमति प्राप्त किए बिना मानसिक बीमारी के इलाज के लिए साइकोसर्जरी नहीं की जाएगी।
- आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को उस समय मानसिक बीमारी से पीड़ित माना जाएगा और उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। सरकार का कर्तव्य होगा कि वह उस व्यक्ति को देखभाल, उपचार और पुनर्वास प्रदान करे, जिसमें गंभीर तनाव और आत्महत्या करने के प्रयास की पुनरावृत्ति के जोखिम को कम किया जा सके।
- निर्धनता रेखा से नीचे, बेसहारा या बेघर मानसिक रोगी को सरकारी या funded अस्पतालो में मुफ्त इलाज मिलेगा।
- संस्थागत देखभाल प्राप्त करने वाली महिला अपने बच्चे से अलग नहीं होगी यदि बच्चा तीन साल से कम उम्र का है.
- कोई भी पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर रोगी का आपातकालीन उपचार शुरू कर सकता है अगर वहाँ रोगी को , दूसरों को , वस्तुओं को या संपत्ति को खतरा हो।
- एकांत कारावास को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है
- इस अधिनियम के तहत नियमो के उल्लंघन की सजा 6 महीने तक का कारावास या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है । बार-बार नियमो को तोड़ने की सजा 2 साल तक की जेल या 50,000 से लेकर 5 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।
कुछ हद तक ये नियम भारत मे मेंटल हैल्थ की स्थिति मे सुधार करने के लिए एक बेहतर कदम है। लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत है। हम सबको भी मेंटल हैल्थ के प्रति अपनी सोच मे सकारात्मक बदलाव लाने होंगे तभी हम बेहतर ज़िंदगी की ओर आगे बढ़ सकते है और समाज मे पागल कहलाए जाने के डर से छुटकारा पा सके ।
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